शिव जी के इन मंत्रों के जाप से सभी कष्ट होंगे दूर

आप सभी को बता दें कि हर माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। इसी के साथ हम आपको यह भी बता दें कि प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। जी हाँ और इस दिन महादेव की पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि शिव जी को सिर्फ फल, फूल, जल, अक्षत, भांग, धतूरा, बिल्व पत्र आदि अर्पित करके भी प्रसन्न किया जा सकता है। आप सभी को बता दें कि प्रदोष व्रत के दौरान पूजा के बाद भगवान शिव का सुमरन करना चाहिए। इसके अलावा भोलेशंकर के मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायी होता है। इस बार सोम प्रदोष व्रत 14 फरवरी को है तो हम आपको बताने जा रहे हैं शिव जी के मंत्र।

महामृत्युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के जाप से कृपाचार्य ने मृत्यु को भी जीत लिया है। अतः यह मंत्र बहुत प्रभावकारी है। संकट और घातक बीमारी के समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप बहुत लाभदायक है।

श्रीदेव्युवाच ॥

भगवन्देवदेवेश सर्वाम्नाय प्रपूजित ।

सर्वं मे कथितं देव कवचं न प्रकाशितम् ॥

प्रासादाख्यस्य मंत्रस्य कवचं मे प्रकाशय ।

सर्वरक्षाकरं देव यदि स्नेहोस्ति मां प्रति ॥

विनियोग

अस्य श्री प्रासादमंत्र कवचस्य वामदेव ऋषिः ।

पंक्तिच्छन्दः। सदाशिवो देवता। साधकाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः।

शिरो मे सर्वदा पातु प्रासादाख्यः सदाशिवः ।

षडक्षरस्वरूपो मे वदनं तु महेश्वरः ॥

पञ्चाक्षरात्मा भगवान्भुजौ मे परिरक्षतु ।

मृत्युंजयस्त्रिबीजात्मा आस्यं रक्षतु मे सदा ॥

वटमूलं समासीनो दक्षिणामूर्तिरव्ययः ।

सदा मां सर्वदः पातु षट्त्रिंशार्णस्वरूपधृक् ॥

द्वाविंशार्णात्मको रुद्रो दक्षिणः परिरक्षतु ।

त्रिवर्णात्मा नीलकण्ठः कण्ठं रक्षतु सर्वदा ॥

चिन्तामणि र्बीजरूपो ह्यर्द्धनारीश्वरो हरः ।

सदा रक्षतु मे गुह्ये सर्वसम्पत्प्रदायकः ॥

एकाक्षर स्वरूपात्मा कूटव्यापी महेश्वरः ।

मार्तण्डभैरवो नित्यं पादौ मे परिरक्षतु ॥

तुम्बुराख्यो महाबीजस्वरूपस्त्रिपुरान्तकः ।

सदा मां रणभूमौ च रक्षतु त्रिदशाधिपः ॥

ऊर्ध्वमूर्द्धानमीशानो मम रक्षतु सर्वदा ।

दक्षिणास्यं तु तत्पुरुषोऽव्यान्मे गिरिनायकः ॥

अघोराख्यो महादेवः पूर्वास्यं परिरक्षतु ।

वामदेवः पश्चिमास्यं सदा मे परिरक्षतु ॥

उत्तरास्यं सदा पातु सद्योजातस्वरूपधृक् ।

इत्थं रक्षाकरं देवि कवचं देवदुर्लभम् ॥

प्रातः काले पठेद्यस्तु सोभीष्टं फलमाप्नुयात् ।

पूजाकाले पठेद्यस्तु कवचं साधकोत्तमः ॥

कीर्तिश्रीकान्तिमेधायुः सहितो भवति ध्रुवम् ।

कण्ठे यो धारयेदेतत्कवचं मत्स्वरूपकम् ॥

युद्धे च जयमाप्नोति द्यूते वादे च साधकः ।

कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे ॥

देवा मनुष्यगंधर्वा वश्यास्तस्य न संशयः ।

कवचं शिरसा यस्तु धारयेद्यतमानसः ॥

करस्थास्तस्य देवेशि अणिमाद्यष्टसिद्धयः ।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां शुक्लपट्टेन वेष्टिताम् ॥

रजतोदरसंविष्टां कृत्वा वा धारयेत्सुधीः ।

सम्प्राप्य महतीं लक्ष्मीमन्ते मद्देहरूपभाक् ॥

यस्मै कस्मै न दातव्यं न प्रकाश्यं कदाचन ।

शिष्याय भक्तियुक्ताय साधकाय प्रकाशयेत् ॥

अन्यथा सिद्धिहानिः स्योत्सत्यमेतन्मनोरमे ।

तवस्नेहान्महादेवि कथितं कवचं शुभम् ॥

न देयं कश्यचिद्भदे यदीच्छेदात्मनो हितम् ।

योऽर्चयेद् गंधपुष्पाद्यैः कवचं मन्मुखोदितम् ।

तेनार्चिता महादेवि सर्वे देवा न संशयः ।

-भगवान शिव गायत्री मंत्र

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।


– रुद्र गायत्री मंत्र:

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं।