यह देश के बहुलवाद पर हमला, हिंदी साम्राज्यवाद को लागू नहीं होने देंगे: गृह मंत्री अमित शाह

 गृह मंत्री अमित शाह का हिंदी को लेकर दिया गया सुझाव विपक्षी नेताओं को पसंद नहीं आया। विपक्षी नेताओं ने शुक्रवार को शाह के बयान की तीखी आलोचना की और इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया। कहा कि वे हिंदी साम्राज्यवाद को लागू करने के कदम को विफल कर देंगे।

कांग्रेस ने हिंदी थोपने का आरोप लगाया

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने शाह पर हिंदी थोपने का प्रयास करने का आरोप लगाया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि हिंदी राजभाषा है, न कि राष्ट्रभाषा, जैसा कि राजनाथ सिंह ने संसद में गृह मंत्री रहते हुए कहा था। हिंदी साम्राज्यवाद भारत के लिए मौत की घंटी होगी। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों से कहा कि गृह मंत्री ने हिंदी के बारे में उपदेश देने की कोशिश की है, जो उन्हें नहीं करना चाहिए। मैं हिंदी का बहुत बड़ा समर्थक हूं, लेकिन थोपने का नहीं।

हिंदी पर जोर बहुलवाद के खिलाफ: स्टालिन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि हिंदी पर शाह का जोर भारत की अखंडता और बहुलवाद के खिलाफ है। यह देश की अखंडता को बर्बाद कर देगा। उन्होंने ट्वीट किया, क्या अमित शाह सोचते हैं कि हिंदी राज्य पर्याप्त है और भारतीय राज्यों की आवश्यकता नहीं है? आप बार-बार वही गलती कर रहे हैं। हालांकि, आप सफल नहीं होंगे।

गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने की कोशिश: तृणमूल

बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि भाजपा नीत केंद्र सरकार द्वारा गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने के किसी भी प्रयास का विरोध किया जाएगा। तृणमूल के वरिष्ठ नेता सौगत राय ने कहा, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा था कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी तब तक नहीं थोपी जाएगी, जब तक वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे।

सिद्दरमैया ने शाह का किया विरोध

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने ट्वीट किया, एक कन्नड़ के रूप में मैं आधिकारिक भाषा को लेकर गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी का कड़ा विरोध करता हूं। हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और हम इसे कभी नहीं होने देंगे।

अमित शाह ने क्या कहा था ?

नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फैसला किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है। इससे निश्चित रूप से हिंदी का महत्व बढ़ेगा। अब समय आ गया है कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का अहम हिस्सा बनाया जाए। हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, न कि स्थानीय भाषाओं के विकल्प के रूप में।