अपने बयानों की वजह से सुर्खियों में बने रहने वाले अकबरुद्दीन ओवैसी के खिलाफ कोर्ट ने सुनाया अपना फैसला

सांसद असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी के हेट स्पीच के मामले में फैसला आ गया है। एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट ने AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी को निर्मल और निजामाबाद जिले से संबंधित दो अभद्र भाषा के मामलों में बरी कर दिया है। इससे पहले, एमपी-एमएलए विशेष कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की थी, लेकिन इस मामले पर बुधवार तक फैसला टाल दिया था। इस दौरान आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी भी नामपल्ली कोर्ट परिसर पहुंचे थे। वह AIMIM के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई हैं।

पिछले सप्ताह आदेश रखा था सुरक्षित

दरअसल, अदालत ने पिछले हफ्ते 2012 में दो सार्वजनिक सभाओं में अकबरुद्दीन द्वारा दिए गए कथित नफरत भरे भाषणों से संबंधित मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। मंगलवार को इस मामले में फैसला आने की उम्मीद थी। लेकिन हैदराबाद की एक अदालत ने AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी से जुड़े 2012 के कथित अभद्र भाषा के मामले में फैसला बुधवार तक टाल दिया। अकबरुद्दीन के खिलाफ पुलिस ने दो मामले दर्ज किए गए थे। 8 और 22 दिसंबर 2012 दिए गए उनके भड़काऊ भाषण के संबंध में आदिलाबाद और निजामाबाद जिलों के थाने में ये मामला दर्ज किया गया था। AIMIM नेता को 7 जनवरी 2013 को उनके भाषणों के सोशल नेटवर्किंग साइटों पर वायरल होने के बाद गिरफ्तार किया गया था।

इन धाराओं के तहत दर्ज हुआ था मुकदमा

बता दें कि अकबरूद्दीन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 153-ए (धर्म के आधार पर दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। लगभग जेल में 40 दिन बिताने के बाद अकबरूद्दीन को अदालत ने जमानत दे दी थी। हालांकि, 2016 में पुलिस ने अकबरुद्दीन के खिलाफ आदिलाबाद जिले की एक अदालत में आरोप पत्र दायर किया था। जब राज्य सरकार ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी।

अकबरूद्दीन ने क्या कहा था

गौरतलब है कि 2012 में अकबरूद्दीन ने भड़काऊ भाषण में कहा था कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा ली जाए तो वे दिखा देंगे कि कैसे 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं का कत्लेआम कर सकते हैं। AIMIM नेता के खिलाफ विभिन्न पुलिस स्टेशनों में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पिछले महीने तेलंगाना उच्च न्यायालय ने एक ही मामले में कई प्राथमिकी को जोड़ने का आदेश दिया था। उनके वकील ने तर्क दिया है कि एक कथित अपराध पर कई प्राथमिकी नहीं हो सकती हैं।