उत्तराखंड

कई गांव ऐसे,जहां नेताओं ने नहीं दिखाई शक्ल,लेकिन हर बार पड़ते है वोट

चुनाव में प्रत्याशी मतदाताओं के घर-घर जाकर दस्तक देते हैं और तरह-तरह के सपने दिखाकर वोट लेते हैं। लेकिन, उत्तरकाशी जिले के पुरोला क्षेत्र में 15 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां न तो प्रत्याशी आज तक वोट मांगने के लिए गए और न विधायक बनने के बाद आभार जताने ही। कारण, इन गांवों तक पहुंचने के लिए आज भी दुश्वारियों का पहाड़ चढ़ना पड़ता है। सड़क तो दूर पैदल रास्ते भी सही नहीं है। स्वास्थ्य, शिक्षा, विद्युत और संचार जैसी सुविधाओं का तो घोर अकाल है। इन गांवों के ग्रामीणों को तो ठीक से यह भी मालूम नहीं होता कि चुनावी समर में कितने महारथी खड़े हैं।

पुरोला विधानसभा की कलाप ग्राम पंचायत

ऐसे गांवों में पुरोला विधानसभा का कलाप गांव भी शामिल है। सड़क के अभाव में यहां पहुंचने के लिए ग्रामीणों को नैटवाड़, मौताड़ से धौला और धौला में सुपिन नदी को ट्राली के सहारे पार कर जोखिम भरे रास्तों से आठ किमी की खड़ी चढ़ाई नापनी पड़ती है। कलाप निवासी वरदान सिंह राणा कहते हैं कि सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार जैसी आधारभूत सुविधाओं के अभाव में कलाप गांव के 140 परिवार आदिवासियों जैसा जीवन यापन कर रहे हैं। उनके गांव में मतदाताओं के पास आज तक न तो कोई प्रत्याशी वादे करने के लिए आया, न वोट मांगने के लिए ही। सिर्फ पास के गांव के कुछ स्थानीय नेता प्रचार सामग्री यहां पहुंचा देते हैं। तभी पता चलता है चुनाव हो रहा है।

पुरोला विधानसभा की ओसला ग्राम पंचायत

मोरी ब्लाक का ओसला गांव सबसे दुरस्थ गांवों में शामिल है। सड़क, संचार, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का घोर अकाल है। पास ही स्थित गंगाड़, पंवाणी व ढाटमीर गांव की स्थिति भी ओसला जैसी ही है। इन चारों गांव में इस बार 673 मतदाता हैं। ओसला निवासी सतेंद्र रावत कहते हैं कि उनके गांव पहुंचने के लिए अभी भी 16 किमी पैदल चलना पड़ता है। गांव में बिजली की लाइन पहुंची है, लेकिन, विद्युत व्यवस्था सुचारु नहीं रहती। आज तक उनके गांव में कभी कोई विधायक या सांसद नहीं आया।

पुरोला विधानसभा की भौंती ग्राम पंचायत

नौगांव ब्लाक के भौंती गांव निवासी दर्शनी नेगी कहती हैं कि उनका गांव आज भी सड़क मार्ग से नौ किमी की पैदल दूरी पर है। सड़क स्वीकृत हुए वर्षों बीत गए, लेकिन निर्माण अभी शुरू नहीं हुआ। उनके गांव में कोई विधायक प्रत्याशी वोट मांगने के लिए भी नहीं आता, जीतने के बाद तो दूर की बात है। हां! इतना जरूर है कि ग्रामीण हर बार विस चुनाव में बढ़-चढ़कर वोट देते आए हैं। वह कहती हैं कि किसी व्यक्ति के बीमार पडऩे पर उसे नौ किमी डंडी-कंडी या पीठ पर लादकर बिजौरी गांव रोड हेड तक लाना पड़ता है।

पुरोला विधानसभा की कामरा ग्राम पंचायत

ग्राम पंचायत कामरा, संखाल और मटिया गांव अनुसूचित जाति बहुल हैं। इन गांवों तक पहुंचने के लिए आज भी 14 किमी पैदल चलना पड़ता है। तीनों गांवों में 180 मतदाता हैं। कामरा गांव कि जयवीर कहते हैं कि सरकारें अनुसूचित जाति के विकास को बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन आज भी एससी बहुल कामरा, संखाल व मटिया गांव में यदि कोई बीमार पड़ जाए तो उसे ग्रामीण अपनी पीठ या चारपाई पर ढोने को मजबूर हैं। रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए भी तीनों गांव के ग्रामीणों को 14 किमी की पैदल दूरी तय कर भंकोली पहुंचना पड़ता है। ऐसे में विधायक व सांसद प्रत्याशी तो दूर, जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी भी यहां वोट मांगने नहीं आते।

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