अमेरिका फिर शुरू करेगा परमाणु परीक्षण, ट्रंप का एलान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि अमेरिका अब परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करेगा। ट्रंप ने कहा कि रूस और चीन जैसे देश लगातार परमाणु गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, इसलिए अब अमेरिका भी पीछे नहीं रहेगा।
एयर फोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए जब ट्रंप से पूछा गया कि क्या वे शीत युद्ध के दौरान आम तौर पर इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक भूमिगत परमाणु परीक्षणों को भी शामिल करेंगे, तो उन्होंने अप्रत्यक्ष जवाब दिया। ट्रंप ने एयर फोर्स वन में कहा आपको बहुत जल्द पता चल जाएगा। लेकिन हम कुछ परीक्षण करने वाले हैं। दूसरे देश ऐसा करते हैं। अगर वे ऐसा करने वाले हैं, तो हम भी करेंगे। मैं यहां कुछ नहीं कहूंगा। उनके इस बयान के बाद वैश्विक स्तर पर नए परमाणु हथियार दौड़ की आशंका तेज हो गई है।
इससे पहले बुधवार को ट्रंप ने पेंटागन को निर्देश दिया था कि वह तुरंत परमाणु हथियारों के परीक्षण की तैयारी शुरू करे। उन्होंने कहा संयुक्त राज्य अमेरिका के पास दुनिया में सबसे अधिक परमाणु हथियार हैं। यह मेरे पहले कार्यकाल के दौरान पूरी तरह से अपग्रेड किया गया था। मुझे यह करना पसंद नहीं, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।
कब और क्यों रुके थे अमेरिकी परमाणु परीक्षण?
अमेरिका ने 1945 से 1992 तक कुल 1,054 परमाणु परीक्षण किए, जिनमें से अधिकतर नेवादा रेगिस्तान में हुए। पर्यावरणीय चिंताओं और शीत युद्ध के बाद बढ़ते दबाव के चलते इन परीक्षणों पर रोक लगाई गई थी। 1963 में अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ ने आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसने वायुमंडलीय और समुद्री परीक्षणों को प्रतिबंधित किया। 1992 में अमेरिकी कांग्रेस ने भूमिगत परीक्षणों पर भी रोक लगाई। हालांकि अमेरिका ने व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किए, लेकिन अब तक इसकी रैटिफिकेशन (स्वीकृति) नहीं की गई है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और चिंताएं
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से पर्यावरणीय खतरे और वैश्विक अस्थिरता बढ़ सकती है। नेवादा के सांसदों ने इसे लोक स्वास्थ्य और शांति के लिए खतरा बताते हुए कहा कि यह फैसला दुनिया को फिर से शीत युद्ध जैसी स्थिति में धकेल सकता है।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका पहले से ही सुपरकंप्यूटर और सिमुलेशन तकनीक के जरिये अपने परमाणु हथियारों की सुरक्षा जांच करता है, इसलिए वास्तविक परीक्षण की कोई तकनीकी आवश्यकता नहीं है।
दूसरी ओर, ट्रंप के समर्थक इसे रूस और चीन को चेतावनी देने का कदम बता रहे हैं। उनका तर्क है कि अमेरिका को अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि किसी को उसकी क्षमता पर संदेह न रहे।
 
				 
					




