राजस्थानराज्य

अरावली की कंदरा में विराजे हैं शिव, बांसवाड़ा के रक्षक माने जाते हैं मंदारेश्वर महादेव

मंदारेश्वर महादेव मंदिर अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। मंदिर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है, जो श्रद्धालुओं की पूजा का केंद्र है।

गुजरात और मध्यप्रदेश की सीमाओं को स्पर्श करता राजस्थान के दक्षिण अंचल का बांसवाड़ा जिला शक्ति के साथ ही शैव उपासना का प्रमुख केंद्र है। बांसवाड़ा शहर में साढ़े 12 शिवलिंग हैं। इस कारण बांसवाड़ा शहर को लोढ़ी काशी के रूप में भी निरूपित किया गया है।

बांसवाड़ा शहर के पूर्वी छोर पर अरावली की कंदरा में मंदारेश्वर महादेव विराजे हुए हैं, जो बांसवाड़ा ही नहीं समूचे अंचल के शिव भक्तों की अगाध आस्था का केंद्र है। मंदारेश्वर महादेव मंदिर एक ऊंची पहाड़ी की प्राकृतिक गुफा के अंदर स्थित है, जो शहर के केंद्र कुशलबाग मैदान से चार किलोमीटर की दूरी पर है।

एक ओर गगन को छूते पहाड़ की तलहटी में शिव विराजित हैं तो इसके ठीक सामने से पूरा शहर दिखाई पड़ता है। मंदिर के चारो ओर एक बहुत ही सुंदर प्राकृतिक दृश्य है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

विशाल शिवलिंग दर्शनीय
मंदारेश्वर महादेव मंदिर अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। मंदिर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है, जो श्रद्धालुओं की पूजा का केंद्र है। इस मंदिर की समस्त व्यवस्थाओं तथा महादेव की सेवा पूजा का जिम्मा श्री दत्त मंदारेश्वर महादेव सेवा संस्थान ट्रस्ट संभालता है। इस मंदिर के समीप दक्षिण भारतीय समाज जनों का स्वामी अय्यप्पा मंदिर है। इसके साथी यहां पर देव में पूज्य भगवान गणपति, ऋषि वाल्मीकि का मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख आस्था स्थल है।

महाशिवरात्रि पर भरता है मेला
मंदारेश्वर महादेव मंदिर पर प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर मेला भरता है, जिसमें समस्त सनातन समाज के श्रद्धालु अपने आराध्य का दर्शन, पूजन, वंदन कर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां त्रयोदशी और चतुर्दशी की मध्य रात्रि पर पहले महाआरती होती है। इसके बाद 6-6 घंटे के अंतराल में महाआरती की जाती है। प्रथम महाआरती उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर भस्मआरती के रूप में होती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

कभी जंगलों से घिरा था क्षेत्र
मंदारेश्वर महादेव मंदिर कई वर्षों पूर्व जंगलों से घिरा हुआ था, संध्या होने पर चंद श्रद्धालु ही यहां पर आकर अपने आराध्य का पूजन करते थे। धीरे-धीरे यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ने लगी। साथ ही आसपास खाली स्थान पर अन्य मंदिर भी निर्मित किए गए, जिससे अब यहां रौनक बनी रहती है। मंदिर ट्रस्ट की ओर से मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों छोर पर भगवान शिव की सवारी के रूप में विशाल वृषभ (बैल) बनवाए गए हैं।

पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर विशाल त्रिशूल भी उकेरा गया है, जो शहर से कई किलोमीटर दूर से ही दिखाई पड़ता है। मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख प्रेमकांत जोशी के अनुसार, विगत वर्षों में यहां पर एक बड़ा भवन भी बनाया गया है, ताकि श्रद्धालुओं के ठहरने की सुविधा हो सके। इसके अतिरिक्त ट्रस्ट की ओर से यहां पर जरूरतमंदों के लिए निशुल्क भोजन की भी सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।

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