
कांकरोली के श्री द्वारिकाधीश मंदिर में कल देर शाम राल उत्सव का आयोजन किया गया। उत्सव के दौरान दो भव्य मशालों पर राल डालकर उसे प्रज्वलित किया गया। इस दौरान पांच आयुर्वेदिक पदार्थों से बना मिश्रण जलती हुई मशालों पर फेंका जाता है, जिससे निकले धुएं को कफ नाशक एवं स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
राजसमंद स्थित पुष्टिमार्ग की तृतीय पीठ, श्री द्वारिकाधीश मंदिर कांकरोली में बुधवार देर शाम भव्य राल उत्सव और 84 खम्भ के दर्शन हुए। इन दिनों मंदिर में बसंत पंचमी फागोत्सव की धूम मची हुई है, जो डोलोत्सव के साथ संपन्न होगा।
राल उत्सव के दौरान मंदिर में दो विशाल मशालों के ऊपर राल मिश्रण डालकर अग्नि ज्वालाओं के दर्शन कराए गए। यह अग्नि लपटें दो मंजिला ऊंचाई तक जाती हैं, जिसे देखने के लिए हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इस दौरान गुलाल-अबीर उड़ाने और रसिया गान का विशेष आयोजन भी किया गया।
यह अद्भुत और आध्यात्मिक दृश्य देखने के लिए देशभर से श्रद्धालु मंदिर में एकत्र होते हैं। फागोत्सव की शुरुआत बसंत पंचमी से होती है, लेकिन होलाष्टक (7 से 14 मार्च तक) के दौरान मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं, जिससे श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर रहता है। इस दौरान ठाकुर जी को विभिन्न रंगों से होली खिलाई जाती है और राल उत्सव का विशेष आयोजन किया जाता है। इस आयोजन का आध्यात्मिक और स्वास्थ्यवर्धक महत्व भी है।
राल उत्सव के दौरान पांच आयुर्वेदिक पदार्थों से बना मिश्रण जलती हुई मशालों पर फेंका जाता है, जिससे अग्नि की विशाल लपटें उठती हैं और धुएं का गुबार छा जाता है। इस धुएं को कफ नाशक एवं स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। इसके बाद गुलाल-अबीर उत्सव में श्रद्धालुओं पर रंगों की वर्षा की जाती है और कमल चौक में बृजवासी ग्वाल-बाल ढोल और चंग की थाप पर राधा-कृष्ण एवं गोप-गोपियों की लीलाओं का गायन करते हैं।
फागोत्सव के दौरान कुल 7 बार राल उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस धार्मिक आयोजन में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं और ठाकुर जी की भक्ति में लीन होकर इस अद्भुत परंपरा का आनंद उठाते हैं।