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केजीएमयू में डायबिटिक रेटिनोपैथी के मरीजों के इलाज में राहत भरी खबर….

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में डायबिटिक रेटिनोपैथी के मरीजों के इलाज में राहत की खबर है। इन मरीजों के इलाज में आंखों में लगाये जाने वाले इंजेक्शन में अब उन्हें दर्द नहीं होगा। केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग में हुए शोध में इसके इलाज की नई तकनीक खोजी गई है।

डायबिटीज हमारे देश में एक आम बीमारी बन चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में 2030 तक डायबिटीज से नौ करोड़ 29 लाख लोग ग्रसित हो चुके होंगे। इस बीमारी से पांच या 10 वर्षों की अवधि तक ग्रसित होने पर मरीज में डायबिटीज से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं बढ़ने लगती हैं। इन्ही गंभीर समस्याओं में से एक डायबिटिक रेटीनोपैथी है। सही समय पर समुचित इलाज न हो तो मरीज को स्थाई रूप से अप्रत्यक्ष अंधापन हो सकता है।

डायबिटिक रेटीनोपैथी के उपचार में बीमारी के स्टेज के हिसाब से आई ड्राप, लेजर, आंखों में इंजेक्शन और सर्जरी तक शामिल होता है। केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग के प्रो. संजीव कुमार गुप्ता के अनुसार, डायबिटिक रेटीनोपैथी के दौरान होने वाले रेटिनल एडेमा और रेटिनल ब्लीडिंग के उपचार के लिए मरीज को आंखों में इंजेक्शन देना पड़ता है। यह प्रक्रिया काफी दर्द भरी होती है।

रेटिनोपैथी के मरीजों को मुख्य रूप से दो दवाएं बीवासिजुमाब और रानीबीजुमाब के अलावा स्टेरायड के तौर पर ट्राई सिमोलोन एसिटेट तथा रेटीनाब्लास्टोमा के मरीजों को कार्बोप्लेटेंट को इंजेक्शन के द्वारा आंखो में लगाई जाती है। मरीज को एक बार इंजेक्शन देने के बाद छह हफ्तों तक उसकी निगरानी की जाती है। जरूरत पड़ने पर छह हफ्तों के बाद उसे दूसरी डोज दी जाती है। केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग में शोधकर्ता डा. शशि तंवर और डा. संजीव ने 2 वर्षों में एक शोध कर तीनों पैथी के मरीजों में दिए जाने वाले इंजेक्शन लगाने की नई तकनीक खोजी है। क्लीनिकल ट्रायल में इसे 155 मरीजों पर इसके परिणाम बेहतर मिले हैं।

डा. संजीव ने बताया कि यह इंजेक्शन सामान्य रूप से आंखों में लंबवत न रख कर तिरछा लगाया जाता है जिससे की आंख में वह वाल्व नुमा छेद बने और आंख का द्रव बाहर न निकले लेकिन इस प्रक्रिया में दवा डालने के बाद आंखों में दबाव बढ़ने के कारण मरीज को काफी तकलीफ का सामना करना पड़ता है। उन्हें भीषण दर्द होता है। दबाव बढ़ने से कुछ समय के लिए ग्लूकोमा की शिकायत हो सकती है। इन कारणों से मरीज दर्द की वजह से आंखों में इंजेक्शन लेने से कतराते थे जिससे कि उनके इलाज पर भी फर्क पड़ता है।

प्रो. संजीव ने बताया कि हमारे शोध की तकनीक से मरीजों का डर निकाला जा सकेगा। शोध में हमने इंजेक्शन को लंबवत (सीधा) ही आंखों में इंजेक्ट किया। इससे आंखों का कुछ द्रव बाहर आ जाने से दवा का दबाव कम हो जाता है और मरीज कम तकलीफ होती है। ट्रायल के दौरान दोनों विधि से लगाए गए मरीजों में दवा के असर में एक ही जैसा परिणाम देखने को मिला है। इस ट्रायल परिणामों को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में भी प्रकाशित किया जा चुका है जहां इस तकनीक को डायबिटिक रेटीनोपैथी के मरीजों के लिए असरदार, सस्ता और दर्द रहित विकल्प के तौर पर सराहा गया है।

प्रो. संजीव ने यह भी बताया कि केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में हर महीने करीब 20 से 30 मरीजों को इंजेक्शन लगाए जाते हैं। केजीएमयू में आने वाले गरीब मरीजों को यह इंजेक्शन निश्शुल्क लगाया जाता है। वहीं, सामान्य मरीजों को महज दो हजार रुपये में यह इलाज मिलता है जबकि निजी अस्पतालों में इसकी कीमत बीस से पचास हजार तक हो सकती है।

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