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जलवायु परिवर्तन को लेकर विकसित देशों पर बरसे भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार

नागेश्वरन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में इस वैश्विक समस्या से निपटने पर जोर दिया गया था। इस दौरान यह कहा गया था कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संसाधन मुहैया कराएंगे।

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने जलवायु परिवर्तन में दोहरे मापदंडों को अपनाने के लिए विकसित देशों की आलोचना की है। नागेश्वरन ने यहां जी7 सम्मेलन की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया है। आपको बता दें कि जी7 सम्मेलन में, 2030 के दशक की शुरुआत में मनमाने तरीके से कोयला बिजली संयंत्रों के उपयोग को समाप्त करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई गई थी।

वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में नागेश्वरन ने इन बातों पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों पर बेहतर जीवन जीने की आकांक्षाओं को त्यागने का दबाव डालना गलत होगा। उन्होंने आगे कहा कि इससे विकसित देशों के स्वच्छ वातावरण और ठंडी जलवायु में जीवन बिताने का रास्ता साफ होगा। उन्होंने तर्क दिया कि विकासशील देशों का आर्थिक विकास उन्हें बेहतर जलवायु परिवर्तन के लिए सुदृढ़ बनाएगा। नागेश्वरन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में इस वैश्विक समस्या से निपटने पर जोर दिया गया था। इस दौरान यह कहा गया था कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संसाधन मुहैया कराएंगे और साथ ही आर्थिक गतिशीलता को बनाए रखेंगे।

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘यह देखने को मिला है कि विकासशील देशों ने अपने घरेलू संसाधनों के माध्यम से जलवायु के क्षेत्र में कार्रवाइयां कीं हैं। इसके अलावा, विकसित देशों का जोर मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन की कार्रवाई के वित्तपोषण रहा है।’ इसके साथ ही नागेश्वरन ने अमीर देशों के दोहरे मानदंडों को लेकर उनकी आलोचना की। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन ने वर्ष 2030 से 2035 तक पेट्रोल और डीजल गाड़ियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए फैसले को टाल दिया है। इसके अलावा जर्मनी ने जीवाश्म ईंधन बॉयलर पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर भी रोक लगा दी।

नागेश्वरन ने आगे कहा कि अमीर देशों ने विकासशील देशों पर कार्बन उत्सर्जक रणनीतियों को अपनाने को कहा है। उन्होंने कहा, ‘जी7 के सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया था कि 2030 के दशक की शुरुआत में कोयला बिजली संयंत्रों को खत्म किया जाएगा। जापान और जर्मनी इस बात से सहमत नहीं हुए। जर्मनी ने तय किया है कि वर्ष 2038 तक कोयला संयंत्रों को बंद कर दिया जाएगा।

इसके अलावा जापान ने अभी तक कोई तिथि तय नहीं की है। यह आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय विवादों को जन्म दे सकता है।’ आपको बता दें कि बीते कुछ वर्षों में भारत के साथ साथ वैश्विक दक्षिण पर विकसित देशों ने कोयला संयत्रों को समाप्त करने का दबाव डाला है। खासतौर पर संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया है। आपको बता दें कि भारत में विद्युत उत्पादन का 70 फीसदी हिस्सा कोयले पर निर्भर है।

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