जानिए यूपी में अब केशव प्रसाद मौर्य की जगह कौन बनेगा नया उप मुख्यमंत्री,भाजपा को साधने होंगे कौन से समीकरण
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव में एक बार फिर सहयोगियों के साथ प्रचंड बहुमत पा लिया है। इस बड़ी सफलता के बाद अब भाजपा को नया मंत्रिमंडल तय करना है। केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव हारने के बाद एक नया उप मुख्यमंत्री भी तय होना है। इसके साथ ही मंत्रिमंडल के गठन में क्षेत्रीय तथा जातीय संतुलन साधने पर भी फोकस रहेगा। भाजपा 2024 के लोकसभा की तैयारी में जुट जाएगी और मंत्रिमंडल के गठन में इसका भी ध्यान रखा जाएगा।
भाजपा को उत्तर प्रदेश में नए उप मुख्यमंत्री पद की तलाश में स्वतंत्र देव सिंह के साथ बेबी रानी मौर्य की दावेदारी को भी ध्यान में रखेगी। इस बार चुनाव में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ ही साथ 11 मंत्री चुनाव हारे हैं। इनकी खाली जगह भरने के लिए भारतीय जनता पार्टी को मंत्रिमंडल में जातीय व क्षेत्रीय समीकरण साधकर नए चेहरों को जगह देनी होगी। 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए संगठन के फार्मूले में फिट डॉ. दिनेश शर्मा को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है।
भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सरकार बनाने में तो सफल रही, लेकिन प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित ग्यारह मंत्री चुनाव हार गए। अब नई सरकार में नए सिरे से मंत्रिमंडल का गठन होना है। यह तो तय है कि अब मंत्रिमंडल के सहारे भाजपा 2024 के लिए रणनीति की चौसर सजाएगी। क्षेत्रीय-जातीय संतुलन साधते हुए न सिर्फ हारे मंत्रियों के स्थान पर भरपाई नए विधायकों से की जाएगी, बल्कि फिर से दो उपमुख्यमंत्री बनाए जा सकते है। जिसके लिए विभिन्न समीकरण पूरे करते हुए प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और आगरा ग्रामीण से विधायक चुनी गईं पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य की दावेदारी प्रबल मानी जा रही है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ऐन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल और फिर योगी मंत्रिमंडल के विस्तार में जिस तरह से भाजपा ने जातीय-क्षेत्रीय संतुलन साधने का प्रयास किया, उसका ध्येय यह चुनाव था। ऐसे में तय है कि योगी आदित्यनाथ सरकार-2 के गठन में 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव की रणनीति शामिल होगी।
दरअसल, सिराथू विधानसभा सीट से लड़े उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार चुके हैं तो डा.दिनेश शर्मा चुनाव नहीं लड़े हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अब उपमुख्यमंत्री पदों के लिए नए चेहरे तलाशे जाएं। उत्तराखंड की राज्यपाल रहीं बेनीरानी मौर्य को इस पद का दावेदार माना जा रहा है। दलित चेहरा होने के साथ वह महिला भी हैं। उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी एक तीर से दो संदेश देना चाहेगी। आगरा में भाजपा की झोली में एक बार फिर नौ में से नौ सीटें डाल दी हैं, इसलिए उस क्षेत्र को प्राथमिकता मिलने की उम्मीद है। उपमुख्यमंत्री का दूसरा पद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को सौंपा जा सकता है।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपने का जो प्रयोग भाजपा ने किया था, उसे स्वतंत्र देव सिंह के साथ दोहराया जा सकता है। इसकी एक और वजह है। केशव को सिराथू सीट पर सपा के चिन्ह पर चुनाव लड़ीं अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल ने शिकस्त दी है। कुर्मी जाति से ताल्लुक रखने वाली पल्लवी का इस लिहाज से अपनी बिरादरी में सियासी कद बढऩा तय है। ऐसे में कुर्मी बिरादरी से आने वाले स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश का उप मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा इसकी काट ढूंढना चाहेगी।
अटकलें यह भी हैं कि डा. दिनेश शर्मा को संगठन का जिम्मा सौंपा जा सकता है। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ब्राह्मण को प्रदेश संगठन सौंपने के प्रयोग भाजपा पहले भी कर चुकी है। 2014 में इस पद पर डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी को बैठाया गया तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले डा. महेंद्र नाथ पांडेय प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। दिनेश शर्मा को संगठन का लंबा अनुभव है, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं और ब्राह्मणों ने भाजपा को भरपूर वोट भी दिया है।
फिर जीते दिग्गज और संगठन के परिश्रमी पाएंगे कुर्सी : मंत्रिमंडल में रहे पुराने व अनुभवी चेहरों के अलावा योगी आदित्यनाथ सरकार के कई कैबिनेट मंत्रियों को दोबारा जगह मिलना स्वाभाविक है। उल्लेखनीय है कि 60 मंत्रियों में से योगी आदित्यनाथ सहित पचास मंत्री चुनाव लड़े, जिनमें से 11 हार गए। तीन मंत्री सपा में जा चुके हैं, जबकि तीन का भाजपा ने टिकट काट दिया था। इस तरह सीधे-सीधे 17 सीटें खाली नजर आ रही हैं। यदि मंत्रिमंडल का यही आकार भी रखा गया तो विरोधी खेमे के दिग्गजों को हराने वाले नए विधायक और चुनाव में संगठन का पराक्रम दिखाने वाले कुछ पदाधिकारियों को मंत्री बनाया जा सकता है। अप्रत्याशित ढंग से भारतीय पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आकर चुनाव जीतने वाले असीम अरुण और प्रवर्तन निदेशालय के संयुक्त निदेशक रहे राजेश्वर सिंह के अलावा दयाशंकर सिंह और बलिया के बांसडीह की केतकी सिंह भी इस कतार में हैं।