उत्तराखंड

जोशीमठ भूधंसाव के बीच भविष्‍य बदरी मंदिर को लेकर चर्चाएं, जिसे लेकर वैज्ञानिक भी हैं हैरान.. 

जोशीमठ भूधंसाव के बीच भविष्‍य बदरी मंदिर को लेकर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। जिसे लेकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं और इनकी सत्‍यता जांच में जुटे हुए हैं।

वैज्ञानिकों की एक टीम ने भविष्‍य बदरी मंदिर का निरीक्षण भी किया है। यह भविष्यवाणी जोशीमठ और आसपास के गांवों में सदियों से लोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लोगों को बताई जा रही हैं।

भविष्‍य बदरी में होंगे भगवान बदरीनाथ के दर्शन!

  • जोशीमठ के लोगों का कहना है कि भूधंसाव के कारण जोशीमठ के रास्ते बदरीनाथ मंदिर पहुंचने का रास्ता बंद हो जाएगा और तब भविष्‍य बदरी में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे।
  • किंवदंतियों के अनुसार भगवान बदरीनाथ के मूल स्थान से अंतर्ध्यान हो जाने के बाद सुबई गांव क्षेत्र में अवतरित होंगे। यह स्थान जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 30 किलोमीटर दूर 2600 मीटर की ऊंचाई पर है।
  • पौराणिक मान्यता है कि यहां आदि गुरु शंकराचार्य ने देवदार के घने जंगलों के बीच भविष्य बदरी की स्थापना भी की थी। भविष्य बदरी का एक नवनिर्मित मंदिर गांव के मध्य में स्थित है।
  • यह बात भी सामने आ रही हैं कि मंदिर में भगवान विष्णु की पद्मासन की मुद्रा वाली प्रतिमा भूसतह से धीरे-धीरे ऊपर उठ रही है। इसी तरह की एक अवधारणा का संबंध जोशीमठ में भगवान नृसिंह की शालिग्राम पत्थर की प्रतिमा से जोड़कर बताया जा रहा है।
  • कहा जाता है कि इस प्रतिमा की बायीं भुजा कलाई के पास से निरंतर पतली होती जा रही है। मान्यता है कि जिस दिन यह भुजा टूटकर गिर जाएगी, उस दिन जय-विजय पर्वत आपस में मिल जाएंगे। इससे बदरीनाथ जाने वाला मार्ग बंद हो जाएगा।

भगवान की आधी आकृति है शिला पर

धार्मिक नगरी जोशीमठ से 19 किलोमीटर मोटर मार्ग की दूरी तय कर सलधार नामक स्थान से सात किमी की पैदल चढ़ाई चढ़कर भविष्य बदरी मंदिर पहुंचा जा सकता है।

भविष्य बदरी में मंदिर के पास एक शिला है। इस शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आधी आकृति नजर आती है। कहते हैं कि जब यह आकृति पूर्ण रूप ले लेगी तब बदरीनाथ के दर्शनों का लाभ यात्रियों को भविष्यबदरी में होगा।

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