उत्तरप्रदेशराज्य

ज्ञानवापी की रक्षा के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने औरंगजेब की सेना को किया था परास्त

सनातन धर्म के प्रतीक मठ-मंदिरों, तीर्थों को मुगल आक्रांताओं के हमले से बचाने के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं का शौर्य हमेशा याद रखा जाएगा। काशी में ज्ञानवापी की रक्षा के लिए वर्ष 1774 में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने औरंगजेब की सेना और मनसबदारों के साथ युद्ध कर परास्त किया था। यही वजह है कि दशनामी संन्यासियों की परंपरा में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं को वीर की उपाधि दी गई है।

इस अखाड़े के नागा साहस और पराक्रम के लिए जाने जाते हैं। अटल और आवाहन अखाड़े के संतों ने मिलकर धर्म की रक्षा के लिए महानिर्वाणी अखाड़े के रूप में अस्त्र- शस्त्र संचालन में निपुण नागाओं की सेना 16वीं शताब्दी के अंत में तैयार की। बीएसएम स्नातकोत्तर महाविद्यालय रुड़की के प्राचार्य रहे डॉ. रामचंद्र पुरी ने दशनाम नागा संन्यासियों पर किए अपने शोध में इसका उल्लेख किया है।

लिखते हैं कि महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंत में बिहार के हजारीबाग स्थित गढ़कुंडा के मैदान में हुई थी। तब सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के परिसर में काल भैरव और गणेश जी के छत्रों के ऊपर अखाड़े के गुरु कपिल महामुनि का छत्र रखते हए सनातन धर्म का ध्वज ऊंचा करने के लिए पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी की स्थापना की गई। उस समय महानिर्वाणी अखाड़े के आठ संस्थापक सदस्य अटल अखाड़े से जुड़े थे। इनके अलावा कुछ संतों का संबंध आवाहन अखाड़े से था।

महानिर्वाणी में हैं दस हजार से अधिक संन्यासी

यानी अटल और आवाहन अखाड़े के तपस्वियों ने मिलकर सनातन संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करने वाली मुगलों की सेना से लड़ने के लिए आवाहन अखाड़ा बनाया। अखाड़े के सचिव श्रीमहंत यमुनापुरी बताते हैं कि मौजूदा समय महानिर्वाणी परंपरा के 10 हजार संन्यासी हैं। औरंगजेब के निर्देश पर उसकी सेना ने 1771 में गढ़कुंडा पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया। उसी समय औरंगजेब की सेना काशी में मठों-मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदों का निर्माण करा रही थी।

औरंगजेब के काशी में हमले की जानकारी मिलने के बाद महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने 1774 में उसकी सेना से भीषण युद्ध किया। दशनाम नागा संन्यासी एवं श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा नाम पुस्तक में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं की ओर से लड़े गए ज्ञानवापी समेत तीन युद्धों का जिक्र है। इस पुस्तक में कहा गया है कि औरंगजेब ने 1974 में अपने सेनापति मिर्जा अली तुरंग खां और अब्दुल अली को विशाल सेना के साथ काशी के ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के लिए भेजा। तब उनके साथ हिंदू मनसबदार राजा हरिदास केसरी और नरेंद्र दास भी थे।

औरंगजेब की सेना को परास्त कर भगाया

औरंगजेब की सेना के हमले के भय से काशी में हाहाकार मच गया। जिन हिंदू राजाओं से सनातन धर्म की रक्षा की आशा थी, वह भी आक्रमणकारियों से घिर कर भयभीत हो गए थे। ऐसे में महानिर्वाणी अखाड़े के हजारों सशस्त्र नागा संन्यासी रमण गिरि, लक्ष्मण गिरि मौनी, देश गिरि नक्खी महाराज के नेतृत्व में विश्वनाथ मंदिर पहुंचे। तब नागा संन्यासियों की सेना ने औरंगजेब की ओर से भेजी गई राजा हरि दास केसरी और नरेंद्र दास की सेना को घेर लिया और अपने युद्ध कौशल से उनको परास्त कर वहां से भगा दिया था।

इस युद्ध में काशी में नागाओं की सेना का नेतृत्व करने वाले हरिवंश पुरी और शंकर पुरी वीरगति को प्राप्त हो गए। महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत यमुना पुरी बताते हैं कि काशी में हरवंश पुरी और शंकर पुरी की समाधियों पर औरंगजेब के क्रूर सैनिकों से धर्म की रक्षा करते हुए 1774 में प्राणोत्सर्ग करने का उल्लेख है। इसी तरह औरंगजेब के ही साथ 1777 में हरिद्वार तीर्थ की रक्षा के लिए युद्ध और पुष्कर राज तीर्थ की रक्षा के लिए मुसलमान गूजरों के साथ महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं के युद्ध का उल्लेख किया गया है।

युद्ध के बाद महानिर्वाणी के नागाओं नेकिया था नगर प्रवेश

महाकुंभ में पेशवाई ( अब छावनी प्रवेश) और धर्म ध्वजा की स्थापना की पंरपरा की शुरुआत प्रयागराज में युद्ध कौशल में निपुण दशनामी नागा संन्यासियों की ही देन मानी जाती है। कहा जाता है कि औरंगजेब की सेना से युद्ध के बाद जब प्रयागराज के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने प्रवेश किया था, तब उनके स्वागत में अस्त्र-शस्त्र, बाजे गाजे के साथ पेशवाई( छावनी प्रवेश) निकाली गई थी।

कमान और सब एरिया की तरह मढ़ी और दावे

महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि जिस तरह किसी विशाल सैन्य संगठन के संचालन के लिए उसे विभिन्न चरणों में छोटी-बड़ी इकाई के रूप में बांटा जाता है, उसी तरह आवाहन अखाड़े की भी प्रशासनिक संरचना की गई है। कमान, एरिया, सब एरिया की तरह ही आम्नाय, पद, मढ़ी, दावा और धूनी का गठन किया गया है। दशनामी परंपरा के नागा संन्यासियों का आंतरिक प्रशासनिक ढांचा इसी रूप में काम करता है।

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