
राजधानी की हरियाली और जल संरक्षण के लिए अहम नम भूमियां तेजी से गायब हो रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि बीते 30 वर्षों में दिल्ली की नमभूमि का लगभग 9 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो गया, जबकि दक्षिणी दिल्ली में यह गिरावट 97 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह अध्ययन एचसीएल टेक और टेरना ग्लोबल बिजनेस स्कूल के सहयोग से किया गया।
इसमें 1991 से 2021 तक के उपग्रह आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जिससे राजधानी के जल निकायों और हरित क्षेत्रों में आई गिरावट का पता चला। अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में नमभूमि क्षेत्र 2000 में 32.9 वर्ग किमी से घटकर 2022 में 30.2 वर्ग किमी रह गया।
इसी दौरान, निर्मित क्षेत्र (कॉलोनियां, सड़कें, उद्योग) 485.6 वर्ग किमी से बढ़कर 825.6 वर्ग किमी हो गया, यानी लगभग 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तेजी से बढ़ता शहरीकरण भूजल पुनर्भरण, वर्षा जल संचयन और जैव विविधता के लिए खतरा बन गया है। दक्षिणी दिल्ली में नमभूमियों की हालत सबसे खराब रही। 1991 में यहां का नमभूमि क्षेत्र 0.8 फीसदी था, जो 2021 में घटकर सिर्फ 0.025 फीसदी रह गया, यानी लगभग 97 फीसदी की गिरावट आई।
इसके अलावा, पूर्वी दिल्ली में यह 0.39 से घटकर 0.016 फीसदी और उत्तरी दिल्ली में 0.27 से घटकर 0.001 प्रतिशत रह गया। सबसे खास बात तो यह है कि केवल मध्य दिल्ली और उत्तर-पूर्वी दिल्ली ने कुछ हद तक अपने जल निकायों को संरक्षित रखा है, जिसका श्रेय यमुना नदी और बाढ़ मैदानों के संरक्षण कार्यों को जाता है।
नजफगढ़ झील और संजय झील सिकुड़ीं
अध्ययन में कहा गया है कि नजफगढ़ झील, भलस्वा झील और हौज खास जैसी प्रमुख नमभूमियां तेजी से सिमट रही हैं। संजय झील अब चारों ओर से निर्माणों में घिर गई है। हालांकि, नई दिल्ली क्षेत्र में जल आवरण थोड़ा बढ़ा है। इसमें 2011 के 0.012 से 2021 में 0.49 फीसदी, जो नियोजित पुनर्स्थापन परियोजनाओं का परिणाम है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की आबादी 1951 में 14.7 लाख से बढ़कर 2023 में करीब 3.3 करोड़ हो गई है। इसी दौरान शहर का क्षेत्रफल 201 वर्ग किमी से बढ़कर 1,467 वर्ग किमी तक फैल गया। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तेज विस्तार ने प्राकृतिक जल प्रणालियों पर भारी दबाव डाला है, जिससे यमुना नदी और उसके बाढ़ मैदान भी संकुचित हो गए हैं।
पर्यावरण पर गंभीर असर
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि नमभूमियों की यह गिरावट दिल्ली के लिए भूजल संकट, बाढ़ के खतरे और बढ़ते तापमान जैसी समस्याओं को और गहरा सकती है। साल 2000 से 2022 के बीच शहर का वनस्पति आवरण 30, वन क्षेत्र 35 और खुली भूमि 50 फीसदी से अधिक घट गई है। इससे वर्षा जल अवशोषण और वायु शीतलन की क्षमता भी घट रही है। अध्ययन में कहा गया है कि नमभूमियों को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। इसमें अवैध निर्माण और अतिक्रमण रोकने के लिए कड़े जोनिंग कानून बनाए जाएं। शहर में कृत्रिम नमभूमियां और वर्षा उद्यान विकसित किए जाएं। साथ ही, उपग्रह निगरानी और ड्रोन मैपिंग से अवैध भूमि उपयोग पर नजर रखी जाए।




