
राजधानी दिल्ली की सड़कों पर 36 साल बाद डबल डेकर बसों की वापसी होगी। 1989 में पुराने बेड़े की जर्जर हालत और सीएनजी युग की शुरुआत के चलते इन्हें बंद कर दिया गया था। अब दिल्ली सरकार इन्हें इलेक्ट्रिक स्वरूप में दोबारा चलाने की तैयारी में है। इसके लिए बसों का ट्रायल रन चुनिंदा रूट पर जल्द शुरू किया जाएगा।
पायलट प्रोजेक्ट के लिए अशोक लेलैंड ने डीटीसी को सीएसआर फंड से एक इलेक्ट्रिक डबल डेकर बस दी है, जिसे ओखला डिपो में खड़ा किया गया है। बस की ऊंचाई 4.75 मीटर और लंबाई 9.8 मीटर है। इसमें 63 से अधिक यात्री एक साथ सफर कर सकते हैं। परिवहन मंत्री डॉ. पंकज कुमार सिंह ने बताया कि दो और बसें जल्द मिलने की उम्मीद है।
पूर्व उपायुक्त (परिवहन विभाग) अनिल छिकारा का कहना है कि डबल डेकर बस की वापसी तकनीकी और इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियों से निपटने के बाद ही संभव होगी। यह पहल दिल्लीवासियों को सुनहरे दिनों से जोड़ेगी। ट्रायल के दौरान बैटरी की परफॉर्मेंस, रूट पर सुरक्षा और यात्रियों की सुविधा का आकलन किया जाएगा। हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं।
फ्लाईओवर की ऊंचाई, सड़कों पर लटकी पेड़ों की टहनियां और ओवरहेड बिजली की तारें इन बसों के संचालन में बाधा बन सकती हैं। इसके लिए डीटीसी अधिकारी रूट मैपिंग कर रहे हैं ताकि सुरक्षित मार्ग तय किया जा सके।
1949 में शुरू हुई थी डबल डेकर बस
राजधानी में डबल डेकर बसों का संचालन 1949 में डीटीसी के अधीन शुरू हुआ था। पीले, हरे और लाल रंग की ये बसें दिल्ली की शान हुआ करती थीं। भीड़भाड़ वाले इलाकों जैसे कश्मीरी गेट, पुरानी दिल्ली, करोल बाग और कनॉट प्लेस तक पहुंचने के लिए लोग अक्सर इन्हीं बसों को चुनते थे। यात्रियों के लिए ऊपरी डेक से दिल्ली की गलियों और बाजारों का नजारा अविस्मरणीय अनुभव होता था।
दिल्ली सरकार का दावा है कि इलेक्ट्रिक डबल डेकर बसों की वापसी पर्यावरण हितैषी और जनता के अनुकूल कदम है। इससे न सिर्फ यात्रा सुगम होगी बल्कि दिल्ली के आधुनिक, ऐतिहासिक रूप को एक साथ जोड़ने का अवसर मिलेगा।