
राजधानी में यमुना नदी पर ऐतिहासिक लोहे के पुल के समानांतर नया रेलवे पुल लगभग बनकर तैयार है। उत्तर रेलवे का कहना है कि केवल कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी (सीआरएस) का निरीक्षण बाकी है। करीब 27 साल से अटकी इस परियोजना का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्तूबर के आखिरी सप्ताह या नवंबर में कर सकते हैं। यह पुल राजधानी में यमुना पर बनने वाला तीसरा रेलवे पुल है। इसके निर्माण में 200 करोड़ रुपये से अधिक खर्च आया है। इसके शुरू होने के बाद दिल्ली से पूर्वांचल, बिहार और उत्तर प्रदेश की ओर जाने वाली ट्रेनें तेज गति से दौड़ेंगी।
ब्रिटिश काल में 1866 में बने लोहे के पुल पर ऊपर से ट्रेनें और नीचे से सड़क यातायात गुजरता है। यह पुल जर्जर हो चुका है। बाढ़ के दिनों में यमुना का पानी पुल की सतह तक पहुंच जाता है, जिससे ट्रेनों की गति और धीमी करनी पड़ती है। यही कारण था कि नए पुल का निर्माण लंबे समय से जरूरी माना जा रहा था। इस पुल की योजना 1997-98 में बनी थी, जबकि निर्माण 2003 में शुरू हो सका। बीच में डिजाइन बदलाव, पुरातत्व विभाग की मंजूरी और तकनीकी दिक्कतों के कारण परियोजना बार-बार टलती रही। पहले लक्ष्य 2016 रखा गया, फिर 2018, 2020 और 2023 तक बढ़ाया गया। आखिरकार अब रेलवे का दावा है कि इसे जल्द शुरू करने की प्रक्रिया चल रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर उद्घाटन की तैयारी
उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हिमांशु शेखर उपाध्याय ने बताया कि निरीक्षण और ट्रायल रन के बाद इस पुल पर नियमित संचालन शुरू कर दिया जाएगा। रेलवे इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहा है। उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कराया जाएगा और इसे दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत के रेलवे नेटवर्क को नई मजबूती देने वाली परियोजना के रूप में देखा जा रहा है।
नए पुल से मिलेंगे यह लाभ
यात्रा समय घटेगा: अभी लोहे के पुल पर ट्रेनों को 15–20 किमी/घंटा की रफ्तार से गुजरना पड़ता है। नए पुल से रफ्तार 60 से ज्यादा होगी।
क्षमता बढ़ेगी: ज्यादा संख्या में ट्रेनें चलाई जा सकेंगी। खासकर त्योहारों और भीड़ के समय यात्रियों को राहत मिलेगी।
सुरक्षा में सुधार: आधुनिक तकनीक से बने इस पुल पर तेज़ और भारी ट्रेनों का सुरक्षित संचालन संभव होगा।
बेहतर कनेक्टिविटी: पुरानी दिल्ली स्टेशन से सीधा मार्ग मिलेगा, जिससे गाड़ियों को डाइवर्ट नहीं करना पड़ेगा।