दिल्लीराज्य

दिल्ली-रेवाड़ी नए ट्रैक पर 130 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ेंगी ट्रेनें

दिल्ली रेल मंडल के इंजीनियरिंग विभाग ने दिल्ली कैंट-रेवाड़ी खंड पर पूर्ण ट्रैक नवीनीकरण (सीटीआर) परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। अब नवनिर्मित ट्रैक पर 110 किलोमीटर प्रतिघंटे की जगह 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें दौडेंगी।

मिशन रफ्तार के तहत पटरियों का तेजी से नवीनीकरण किया जा रहा है। यात्रियों की सुरक्षा को लेकर लगातार उठ रहे सवालों को ध्यान में रखते हुए पटरियों के साथ हो रही छेड़छाड़ और जंग पर लगाम लगाने के लिए भी नई तकनीक पर जोर दिया जा रहा है। इसी कड़ी में दिल्ली रेल मंडल के इंजीनियरिंग विभाग ने दिल्ली कैंट-रेवाड़ी खंड पर पूर्ण ट्रैक नवीनीकरण (सीटीआर) परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। अब नवनिर्मित ट्रैक पर 110 किलोमीटर प्रतिघंटे की जगह 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें दौडेंगी। इसके अलावा दुर्घटनाओं से सबक लेते हुए पटरियां जहां जुड़ती हैं, वहां अब चूड़ीदार रिंग की जगह विश्वस्तरीय पेच का इस्तेमाल किया जा रहा है। आम लोग इसे खोल नहीं सकेंगे और ट्रेन हादसों में कमी आएगी।

रेलवे अधिकारियों के अनुसार, उत्तर रेलवे के इतिहास में पहली बार ट्रैक नवीनीकरण ट्रेन (टीआरटी) मशीन का इस्तेमाल किया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में सीटीआर-130 किलोमीटर के कार्य के रूप में रेलवे बोर्ड से अनुमति मिली थी। नवीनीकरण के दौरान ट्रेनों के संचालन में कम से कम बाधा पड़े इसे ध्यान में रखकर सीटीआर कार्य को रात के दौरान ट्रैफिक ब्लॉक लेकर पूरा किया गया। इसमें अप और डाउन दोनों लाइनें शामिल थीं। उच्च मानकों को खासतौर पर इस महत्वकांक्षी योजना में ध्यान दिया गया है।

दो पटरियों में गैप पाटने के लिए नई तकनीक
पहले पटरियों को स्लीपर के साथ कसने के लिए चूड़ीदार रिंग का इस्तेमाल होता था। इसमें जंग लगने और पटरियों से छेड़छाड़ की आशंका रहती थी। अब इसकी जगह विश्वस्तरीय पेच का इस्तेमाल किया जा रहा है। पेच को टॉर्क रेंच से कसा जाता है जिसे आम लोगों का खोल पाना संभव नहीं है। पेच की लाइफ 100 साल तक होगी। चूड़ीदार रिंग को हर पांच साल में बदलना पड़ता था और ट्रैक निरीक्षक को हथौड़े से इसे कसना पड़ता था।

अल्ट्रासाउंड से पटरियों की कमियां होंगी दूर
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, पटरियां नई तकनीक के साथ बिछाई जा रही हैं। इससे स्लीपर और पटरी को बिछाने व बदलने में भी आसानी होगी। दो पटरियों के बीच का गैप भी इस तकनीक के अपनाने से खत्म हो रहा है। पटरियों के अंदर और ऊपरी हिस्से में खामियों की जांच भी आसान हो गई है। अल्ट्रासोनिक फ्लो डिटेक्शन मशीन का इस्तेमाल कर जांच की जा रही है। रेलवे कर्मचारियों को पटरियों को एक मशीन के जरिये छूकर जांच करने की जरूरत नहीं होगी। पटरियों का अब अल्ट्रासाउंड हो सकेगा।

ट्रैक नवीकरण पर खर्च
2022-23–16,326 करोड़
2023-24–17850 करोड़
2024-25-17,652 करोड़ प्रस्तावित

Related Articles

Back to top button