
विशेषज्ञों ने बताया कि एएमएल के लक्षण अक्सर सामान्य थकान या बुखार जैसे लग सकते हैं, लेकिन समय रहते जांच कराना जीवन बचा सकता है।
देश में बढ़ते कैंसर रोगियों के साथ ही ब्लड कैंसर, खासकर एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) के मामलों में इजाफा चिंताजनक है। महानगरों में खासकर 30 से 40 वर्ष की आयु के युवाओं में इसके मामले तेजी से बढ़े हैं।
कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अशय कारपे ने बताया कि ब्लड कैंसर के कुल मामलों में 10 से 15 प्रतिशत हिस्सेदारी एएमएल की है। हालांकि राहत की बात यह है कि अब इलाज के लिए नई और उन्नत तकनीक उपलब्ध हैं, जो मरीजों को जीवन देने में कारगर साबित हो रही हैं।
दिल्ली स्थित एक निजी अस्पताल में हुई बैठक में विशेषज्ञों ने इस विषय पर विस्तार से चर्चा की। बैठक में समय पर निदान, आधुनिक दवाएं, जागरूकता और सही इलाज पर ज़ोर दिया गया। डॉ. श्याम अग्रवाल, मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने बताया कि एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का ब्लड कैंसर है।
इसमें शरीर में असामान्य कोशिकाएं तेजी से बढ़ती हैं और स्वस्थ रक्त कोशिकाओं को दबा देती हैं। इसके कारण शरीर की संक्रमण से लड़ने, ऑक्सीजन पहुंचाने और रक्तस्राव नियंत्रित करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है।
अब इलाज के लिए कई विशिष्ट आनुवंशिक म्यूटेशन को निशाना बनाने वाली दवाएं मौजूद हैं। इनमें से एक, इवोसिडेनिब, आईडीएचवन म्यूटेशन वाले मरीजों में प्रभावी साबित हो रही है। इसके साथ ही इलाज में कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, और बोन मैरो ट्रांसप्लांट जैसी तकनीकों का इस्तेमाल भी हो रहा है।
लक्षणों को न करें नजरअंदाज
विशेषज्ञों ने बताया कि एएमएल के लक्षण अक्सर सामान्य थकान या बुखार जैसे लग सकते हैं, लेकिन समय रहते जांच कराना जीवन बचा सकता है।