नए दौर में पीछे छूटा त्योहारों की कहानी कहने वाला आर्ट, इनको संजो रहीं निर्मला मिश्रा ने क्या कहा

हिंदू संस्कृति में हर त्योहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक या सामाजिक कथा जुड़ी होती है। पहले घरों की महिलाएं त्योहार के अवसर पर विशेष चित्र बनाकर नई पीढ़ी को उनके महत्व और कथाओं से अवगत कराती थीं। यह पारंपरिक कला ‘फेस्टिवल आर्ट’ अब लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। आज के समय में त्योहारों को महज छुट्टी और मनोरंजन के रूप में देखा जाने लगा है, जिससे इनका सांस्कृतिक महत्व घटता जा रहा है।
कुंडम निवासी निर्मला मिश्रा ने बातचीत में बताया कि उन्होंने यह कला 12 वर्ष की उम्र में अपनी नानी के घर रहकर सीखी थी। इस कला के तहत त्योहारों के अवसर पर चावल, हल्दी, गोबर, मिट्टी आदि प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग कर त्योहार से संबंधित कथाओं पर आधारित चित्र बनाए जाते हैं। पूजा के समय इन चित्रों के माध्यम से त्योहार की कहानी सुनाई जाती थी, जिससे नई पीढ़ी को त्योहार का वास्तविक महत्व समझ में आ सके।
निर्मला मिश्रा ने बताया कि अब बहुत कम महिलाएं यह कला सीखने में रुचि लेती हैं। रेडीमेड पोस्टरों के बढ़ते प्रचलन के कारण अब घरों में इस तरह की पारंपरिक कलाओं की जगह नहीं रही। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी त्योहार को सिर्फ सेलिब्रेशन समझती है, उनके मूल भाव से अनजान है। फेस्टिवल आर्ट न केवल कला है, बल्कि यह पीढ़ियों से चली आ रही एक सांस्कृतिक परंपरा है। जिसे बनाने के लिए समर्पण, साधना और त्योहार का ज्ञान होना जरूरी है।
खेल को प्रोत्साहन देने सात एकड़ जमीन का दान
निर्मला मिश्रा वृद्धावस्था में भी सामाजिक सेवा में सक्रिय हैं। उन्होंने युवाओं को खेल की रुचि बढ़ाने के लिए अपनी सात एकड़ निजी भूमि स्टेडियम निर्माण के लिए दान की है। उन्होंने बताया कि कुंडम आदिवासी बहुल क्षेत्र है जहां प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। लेकिन, आधारभूत सुविधाओं के अभाव में बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते। क्षेत्र में खेल मैदान न होने के कारण बच्चे कचरे से भरी खाली जगहों में खेलने को मजबूर हैं। इसलिए उन्होंने निजी जमीन दान करने का निर्णय लिया, जिसका भूमि पूजन हो चुका है, जल्द निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।
डिजिटल आर्टिस्ट भतीजे ने सीखी पारंपरिक कला
निर्मला मिश्रा के भतीजे निखिल मिश्रा, कुंडम स्थित कुंडेश्वर हायर सेकेंडरी स्कूल के संचालक हैं। उन्होंने इंदौर से डिजिटल आर्ट का कोर्स किया है। इसके बावजूद उन्होंने अपनी बुआ निर्मला मिश्रा से पारंपरिक फेस्टिवल आर्ट सीखी। निखिल ने स्कूल में एक संस्कृति म्यूजियम भी स्थापित किया है, जिसमें निर्मला मिश्रा द्वारा बनाई गई फेस्टिवल आर्ट के अलावा गोंड आर्ट, गोंड टैटू पेंटिंग, पारंपरिक कृषि उपकरण, घरेलू बर्तन और महिलाओं के पुराने आभूषण भी प्रदर्शित किए गए हैं।
तो खत्म हो जाएंगी परंपराएं
निखिल मिश्रा कहते हैं कि आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को अपनी विरासत और संस्कृति से परिचित कराना भी जरूरी है। यदि आने वाली पीढ़ी को त्योहारों की कथाएं और उनका महत्व नहीं बताया गया तो भविष्य में यह परंपराएं समाप्त हो जाएंगी।