राष्ट्रीय

नेताजी का भारत को स्वतंत्र कराने का एकमात्र उद्देश्य,और यह साबित कर दिया कि भारत, भारत है

विश्व इतिहास में किसी भी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में ऐसा व्यक्तित्व शायद कहीं नहीं मिलेगा, जिसने न केवल राजनीतिक तौर पर राष्ट्रीय आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया बल्कि खुद एक सैनिक की वर्दी पहनकर उस सेना का गठन किया, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए युद्ध किए और पंद्रह हजार वर्गमील क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त कर अंडमान और पूर्वी भारत में आजाद हिंद सरकार की सत्ता स्थापित की। यही नहीं, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने खुद कमांडर इन चीफ के रूप में नेतृत्व संभाल युद्ध के मोर्चों पर सैनिकों को प्रोत्साहित किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज से संबंधित बहुत से तथ्यों के ऊपर चादर डाल दी गई थी पर वह इतिहास अब सामने आ रहा है। आजार्द ंहद फौज के सैनिकों से नेताजी ने कहा था कि यही सेना आजाद हिंद की भी सेना होगी। दुर्भाग्यवश सरदार पटेल, कई अन्य नेताओं और जनता की इच्छा के विरुद्ध पंडित जवाहर लाल नेहरू ने माउंटबेटन के कहने पर आजाद हिंद फौज के सैनिकों को भारत की सेना में नहीं लिया।

भारतीयता से प्रेरित शासन व्यवस्था

भारत के भविष्य के बारे में नेताजी की सबसे बड़ी योजना स्वतंत्र भारत के लिए एक ऐसी नौकरशाही बनाने की थी जो भारतीयता से प्रेरित हो और इसी संदर्भ में आजाद हिंद दल का गठन किया गया था। जिन-जिन प्रदेशों को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराया गया, उनका प्रशासन आजाद हिंद के लोगों ने ही संभाला था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत के औद्योगीकरण और विकास के लिए पहली प्लानिंग कमेटी का निर्माण नेताजी ने 1938 में किया था। इसके लिए उन्होंने मेघनाद साहा और साराभाई जैसे विज्ञानियों की मदद ली थी। आजाद हिंद सरकार और आजाद हिंद फौज के माध्यम से नेताजी ने यह साबित कर दिया था कि भारत, भारत है। भारतीय, भारतीय हैं और आजाद हिंद सरकार थी अखंड भारत की सरकार ।

रणभूमि में उतरी रानी झांसी

नेताजी द्वारा आधुनिक युग की सबसे पहली महिला रेजिमेंट खड़ी करना भारत की उस नारी शक्ति का प्रतीक था जो कि समय-समय पर देश के लिए लड़ी है। आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजिमेंट ने इस मिथ्या को तोड़ दिया था कि भारतीय नारी केवल घर तक ही सीमित है। किस प्रकार इन वीरांगनाओं ने परिवारों को छोड़कर देश के लिए खुद को अर्पित किया, ऐसे उदाहरण इतिहास में बहुत कम देखने को मिलते हैं। किस तरह एक मां लीलावती मेहता अपनी दोनों बेटियों रमा और नीलम मेहता के साथ रानी झांसी रेजिमेंट में शामिल होती हैं, जानकी थेवर नामक एक 17 साल की किशोरी नेताजी का भाषण सुनती है और वहीं अपने आभूषण उतारकर सेना में शामिल हो जाती है, गुजरात की महिला गीता बटइ रंगून में अपने 50 लाख रुपए के आभूषण आजाद हिंद फौज को दे देती हैं। ऐसे न जाने कितने त्याग और बलिदान के उदाहरण नेताजी की अपील पर सामने आते हैं। रानी झांसी रेजिमेंट ने तीन मोर्चों पर युद्ध लड़े, लेकिन हमारे इतिहासकारों ने यह मिथ्या फैला दी कि यह रेजिमेंट कभी युद्ध में नहीं गई।

तोड़ीं जाति-संप्रदाय की दीवारें

नेताजी द्वारा निर्मित आजाद हिंद सरकार में जाति, क्षेत्र या धर्म जैसा कोई भेदभाव नहीं था। एक बार सिंगापुर के चेट्टियार मंदिर से नेताजी ने आजाद हिंद सरकार के लिए दान मांगा था। इस पर मंदिर की तरफ से शर्त रखी गई कि नेताजी वहां आकर भाषण दें। इससे पहले नेताजी को पता लगा कि उस मंदिर में जातीय व्यवस्था को माना जाता है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे वहां अपने सभी अफसरों के साथ ही आएंगे। ऐसा ही हुआ। चेट्टियार मंदिर की वर्षों पुरानी परंपरा टूट गई। नेताजी वहां अपने सभी अफसरों के साथ पहुंचे, जिनमें सभी पंथ, मत, संप्रदाय, जाति के लोग शामिल थे। उन सबका वहां स्वागत किया गया। उन्हें तिलक लगाया गया और बदले में उन्होंने भी मंदिर को आदर दिया। इसके बाद से सिंगापुर के गुरुद्वारे और मंदिर आजाद हिंद सरकार के लिए खोल दिए गए। ध्यान रहे, संतुलित सामाजिक व्यवस्था के लिए सुभाष चंद्र बोस को कोई संगठित आंदोलन नहीं करना पड़ा। वे जैसा सोचते थे, वैसा उन्होंने करके दिखाया। आजाद हिंद फौज के सैनिक एक साथ खाना खाते थे।

देश के लिए मिला हर वर्ग का साथ

कितनों को मालूम है कि शंघाई में आजाद हिंद फौज का पूरा ट्रेनिंग कैंप था। शंघाई का गुरुद्वारा आजाद हिंद सरकार का गढ़ था। 1944 में 2,000 सिख परिवार आजाद हिंद फौज में शामिल होने बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे थे। रानी झांसी रेजिमेंट की 50 फीसद से अधिक महिलाएं तमिलनाडु से गई कुली महिलाएं थीं। यही नहीं, वहां के बागानों में काम करने वाले तमिल मजदूरों की पूरी प्लाटून नेताजी ने खड़ी कर दी थी, जिन्होंने इंफाल की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। आज भी उस युद्ध के नाम पर चेन्नई में ‘रेड हिल’ कालोनी मौजूद है। यूसुफ मफरानी नेताजी को एक करोड़ रुपए देते हैं और बदले में उनसे सिर्फ आजाद हिंद फौज की वर्दी मांग लेते हैं। मलाया के अंदर दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चलाने वाले दिनभर मेहनत करके जो कमाते थे, वे शाम को आजाद हिंद फौज को दे जाते थे। बर्मा और थाइलैंड में ग्वाले अपनी गाय और भैंस लेकर आजाद हिंद फौज के पास पहुंच जाते थे कि हमारे पास और कुछ नहीं है। हम फौज के साथ चलेंगे और उन्हें दूध पिलाएंगे। बैंकाक में सरदार इशर सिंह 100 किलो चांदी आजाद हिंद सरकार को देते हैं। भैया नाथ तिवाड़ी 20 एकड़ की जमीन आजाद हिंद फौज का ट्रेनिंग कैंप बनाने के लिए देते हैं और उनके तीनों बेटे आजाद हिंद फौज में शामिल होते हैं। उनकी बेटी पार्वती रानी झांसी रेजिमेंट में शमिल होती हैं। इस प्रकार के न जाने कितने ही वृतांत धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। नेताजी ने तकरीबन 91 सैनिकों को उनकी बहादुरी के लिए ‘तमगा ए भारत’, ‘तमगा ए शत्रु नाश’, ‘तमगा ए शहीद’ जैसे मेडल दिए थे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि हमारी वर्तमान पीढ़ी को इनमें से एक का भी नाम नहीं बताया गया, चाहे वह उत्तराखंड के लेफ्टिनेंट कुंदन सिंह बिष्ट हों या पंजाब के कैप्टन अमरीक सिंह।

तथ्यों को किया गया नजरअंदाज

अंग्रेजों और भारत के कम्युनिस्टों ने आजाद हिंद फौज और नेताजी के संदर्भ में ऐसा प्रचार किया कि वे हिटलर और मुसोलिनी के पिट्ठू हैं और भारत पर जापानियों का शासन लाना चाहते हैं। यहां तक कि खुद पंडित नेहरू ने असम जाकर भाषण दिया कि यदि नेताजी जापानियों को लेकर आजाद हिंद फौज के साथ आते हैं तो खुद तलवार लेकर उनका मुकाबला करूंगा। वे यह भूल गए कि जापानी फौज के साथ जब आजाद हिंद फौज ने बर्मा की तरफ से भारत की ओर कूच किया था तब नेताजी ने जापानियों से एक समझौता किया था, जिसके अंतर्गत भारत के जितने प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त कराया जाएगा, वहां कहीं भी जापान का झंडा नहीं लगेगा। साथ ही, उनका शासन जापान द्वारा नहीं, बल्कि नेताजी द्वारा बनाए गए आजाद हिंद दल के प्रशासकों द्वारा किया जाएगा।

स्वतंत्रता था एकमात्र उद्देश्य

सबसे बड़ी बात यह है कि जिस जर्मनी, जापान और इटली की मदद नेताजी ने ली उन देशों ने कभी भारत का शोषण नहीं किया था बल्कि हमेशा भारतीय क्रांतिकारियों की मदद की थी। नेताजी ने स्पष्ट कर दिया था कि उनका उद्देश्य केवल भारत मां की बेड़ियों को काटकर देश को स्वतंत्र कराना था। इसके लिए जहां से भी मदद मिल सकती हो, वे ले रहे थे। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि यदि जापानी भारत में अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते हैं तो वे ऐसा कभी नहीं होने देंगे। जापानी यह कभी नहीं चाहते थे कि नेताजी आजाद हिंद बैंक बनाएं। पर उन्होंने भारत के पहले राष्ट्रीय बैंक की स्थापना की। द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों की विजय के बाद आजाद हिंद सरकार दुनिया की अकेली ऐसी सरकार थी जिसने आत्मसमर्पण नहीं किया। नेताजी का अंतिम आदेश था कि हम लोग बिखर रहे हैं और शीघ्र ही देश की स्वतंत्रता के लिए दोबारा लामबंद होंगे। 18 अगस्त, 1945 के बाद नेताजी अदृश्य हो गए, लेकिन एक बात सुनिश्चित हो चुकी है कि न तो कोई हवाई दुर्घटना हुई और न ही उसमें उनकी मृत्यु हुई। आज भी इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए लोग कार्यरत हैं। नेताजी भारतीयों के हृदय में आज भी जीवित हैं।

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