
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान कुल 384 मामले ही सामने आए, जिनमें रोजाना डबल डिजिट तक ही मामले दर्ज हुए। 19 नवंबर को मात्र 12 नए मामले रिपोर्ट हुए।
पिछले साल 2024 की तुलना में इस साल पराली जलाने के मामलों में करीब 50 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है। इस साल अब तक कुल 5046 मामले सामने आए, जबकि 2024 में इसी समय तक मामले 10104 थे। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वातावरण इंजीनियर राजीव गुप्ता का कहना है कि ऐसी कोई स्टडी नहीं हुई है, जो साबित कर सके कि पंजाब में पराली जलाने के धुएं से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा है।
जिलेवार आंकड़ों में संगरूर 695 मामलों के साथ सबसे आगे है। इसके बाद दूसरे नंबर पर 693 मामलों के साथ तरनतारन जिला है। फिरोजपुर से पराली जलाने के 544 मामले, अमृतसर से 315 मामले, बठिंडा से 361, मानसा से 302 मामले, मुक्तसर से 367, पटियाला से 235, कपूरथला से 136, लुधियाना से 213, फाजिल्का से 254, फरीदकोट से 131, बरनाला से 105, मालेरकोटला से 90, जालंधर से 83, फतेहगढ़ साहिब से 48, एसएएस नगर से 29, होशियारपुर से 17 मामले सामने आए।
पंजाब में 19 नवंबर तक 2316 मामलों में एक करोड़ 22 लाख रुपये के जुर्माने हो गए हैं। इसमें से 60 लाख 55 हजार रुपये की वसूली भी कर ली गई है। इसके साथ ही 1890 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है और 2138 रेड एंट्रियां की गई हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, पराली जलाने में गिरावट से पंजाब के शहरों का एक्यूआई स्तर सुधर कर मध्यम श्रेणी में आ गया है। इसके बावजूद दिल्ली का एक्यूआई खतरनाक स्तर पर है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या पंजाब को दिल्ली के प्रदूषण का जिम्मेदार ठहराना उचित है।


