
पंजाब में बाढ़ ने कहर बरपा रखा है। 10 जिले बाढ़ के कारण बुरी तरह प्रभावित हैं। पहाड़ों से आ रहे पानी का भार झेलने के लिए बांधों की स्टोरेज क्षमता कम पड़ने लगी है। साल दर साल बाढ़ की चुनौती बढ़ रही है। साफ है कि अब आगामी वर्षों के लिए हमें अपनी तैयारी और मजबूत करनी होगी।
पिछले काफी समय से नदियों व नालों से गाद निकालने का काम भी नहीं हो पाया है। यह भी एक कारण है कि पंजाब में बाढ़ के गंभीर हालात बन गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत जगह धुस्सी बांधों के टूटने से भी नुकसान में इजाफा हुआ है। इनके निर्माण और मरम्मत पर भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
पंजाब में इस समय पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर, फाजिल्का, अमृतसर, तरनतारन और मोगा में हालात काफी चिंताजनक बने हुए हैं।
पंजाब की तीन प्रमुख नदियों सतलुज, ब्यास और रावी उफान पर हैं। सतलुज की क्षमता 2 लाख क्यूसेक तक पानी झेलने की है। कुछ जगह यह 2.60 लाख क्यूसेक तक पानी भी झेल लेती है। इसी तरह ब्यास की क्षमता 80 हजार क्यूसेक और रावी की क्षमता 2 लाख क्यूसेक तक है लेकिन तीनों ही नदियों में इस बार क्षमता से अधिक पानी आया। इस कारण इन नदियों ने भारी तबाही मचाई। साथ ही अधिक पानी के चलते बांधों पर भी बोझ बढ़ गया।
सतलुज नदी रूपनगर जिले से पंजाब में प्रवेश करती है। ये लुधियाना, जालंधर, कपूरथला, फिरोजपुर और फाजिल्का से गुजरती है। सतलुज पर ही भाखड़ा बांध बना हुआ है। भाखड़ा बांध में खतरे का निशान 1680 फीट है। इस सीजन में बांध का जलस्तर 1672 फीट तक पहुंच गया था। वर्ष 2023 के बाद ही भाखड़ा में ऐसे हालात पैदा हुए हैं। यही कारण है कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) ने पहले ही बांध के गेट खोल दिए गए जिस कारण प्रदेश के नहरों व बैराज का भी जलस्तर बढ़ गया।
ब्यास नदी होशियारपुर में पंजाब में प्रवेश करती है और यह गुरदासपुर, कपूरथला, तरनतारन और अमृतसर जिलों से गुजरती है। ब्यास नदी पर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में पौंग बांध बना है जिसकी स्टोरेज क्षमता 1400 फीट है और 1390 फीट को खतरे का निशान माना गया है। इस सीजन में पौंग का जलस्तर 1393 फीट तक पहुंच गया जिस कारण पौंग से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया।
पौंग के इतिहास में अब तक का सबसे अधिक 9.68 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी आया जिसके चलते बांध की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही बोर्ड की तरफ से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया। यही कारण है कि ब्यास में अधिक पानी आने के कारण पंजाब के पांच जिलों में बाढ़ के हालात बन गए। सबसे ज्यादा नुकसान भी इन्हीं जिलों में हुआ है।
रावी नदी हिमाचल प्रदेश से पठानकोट से पंजाब में प्रवेश करती है जो सूबे में पठानकोट के साथ ही गुरदासपुर से होकर गुजरती है। रावी पर ही पंजाब और जम्मू कश्मीर के बॉर्डर पर रणजीत सागर बांध बना हुआ है। इसकी क्षमता 1370 फीट है। इस सीजन में बांध का जलस्तर 1729 फीट को भी पार गया। 1988 में रावी नदी में 11.20 लाख क्यूसेक पानी था जबकि इस साल यह 14.11 लाख क्यूसेक तक पहुंच गया। इसमें रणजीत सागर डैम से लगभग 2.15 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया जिसका पठानकोट पर साफ देखा जा सकता है। पठानकोट जिले में लोग सबसे अधिक नुकसान झेल रहे है। काफी संख्या में गांव बाढ़ की चपेट में है जिन्हें सेना, एनडीआरएफ के सहयोग से रेस्क्यू किया जा रहा है।
प्री व पोस्ट मानसून निरीक्षण जरूरी
पंजाब के पूर्व विशेष मुख्य सचिव केबीएस सिद्धू ने बताया कि प्री व पोस्ट मानसून सीजन के दौरान सभी नदी, नालों का निरीक्षण होना चाहिए। इस संबंध में डीसी की अध्यक्षता में कमेटियां गठित होनी हैं लेकिन इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। सभी बांधों को पक्का किया जाना चाहिए क्योंकि हर बार ही बांध टूटने के कारण ही बाढ़ जैसे हालात पैदा होते हैं। इस कारण गांव में जलभराव के साथ ही लाखों एकड़ कृषि भूमि में फसल खराब होती है। साथ ही नदी व नालों की भी नियमित रूप से सफाई होनी चाहिए ताकि इस समस्या का स्थायी समाधान किया जा सके। नालों की सफाई न होने के कारण ही यह ओवरफ्लो हो जाते हैं।
नदियों से गाद निकालने से दूर होगी समस्या
पिछले काफी समय से नदियों से गाद निकालने का काम नहीं हुआ है। घग्गर के कारण किस तरह से पिछले कुछ साल से बाढ़ के हालात बन रहे हैं। उससे हर कोई भली-भांति वाकिफ है। नियमित रूप से नदी व नालों से गाद निकालने का काम किया जाना चाहिए। साथ ही नदी व नालों के किनारे अतिक्रमण भी बढ़ रहा है जो भी बाढ़ का प्रमुख कारण है। इस अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण भी ऐसे हालात बन रहे हैं। पंजाब के नजदीक पहाड़ी राज्य है तो यहां बाढ़ आने के अनेक कारण हैं। अब राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में भी बाढ़ आ रहे हैं। फॉरेस्ट कवर कम हो रहा है और बादल फटने की घटनाएं भी आम हो गई हैं। इस सबसे साफ है कि नदी व नालों के लिए प्राकृतिक मार्ग में किसी भी तरह की बाधा नहीं डाली जानी चाहिए ताकि इस तरह के गंभीर परिणामों से बचा जा सके।