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पीएम मोदी: इस बार माओवादी आतंक मुक्त दिवाली की रौनक दिखेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा वो दिन दूर नहीं, जब देश नक्सलवाद से, माओवादी आतंक से पूरी तरह मुक्त होगा। इस बार माओवादी आतंक से मुक्त क्षेत्रों में दिवाली की रौनक कुछ और होने जा रही है। 50-55 साल हुए दिवाली नहीं देखी थी उन्होंने। अब दिवाली देखेंगे और मुझे पक्का विश्वास है हमारी मेहनत रंग लाएगी। वहां भी इस बार खुशियों के दीए जलेंगे। पीएम ने कहा, ये भी मोदी की गारंटी है।

दिल्ली में एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा, मैं आपके सामने एक ऐसा विषय उठाना चाहता हूं जो देश की सुरक्षा के हिसाब से तो बड़ा है ही, हमारे नौजवानों के भविष्य से भी जुड़ा है। ये विषय नक्सलवाद का है। कांग्रेस के शासन में अर्बन नक्सलों का इकोसिस्टम इस कदर हावी था, और आज भी है, कि माओवादी आतंक की घटनाओं को लोगों तक न पहुंचने देने के लिए सेंसरशिप चलाता रहता है। कांग्रेस के शासन में अर्बन नक्सली माओवादी आतंकवाद पर कोई चर्चा नहीं होने देते थे। इसे नक्सलवाद नाम यूं ही दे दिया गया था, हकीकत में ये माओवादी आतंक था।

मीडिया में कांग्रेस के इकोसिस्टम की चर्चा करते हुए पीएम मोदी ने कहा, तब देश में आतंकवाद की इतनी चर्चा होती थी। अनुच्छेद 370 पर बहस होती थी। लेकिन अर्बन नक्सली, जो ऐसी संस्थानों पर कब्जा करके बैठे थे, माओवादी आतंक पर पर्दा डालने का काम करते थे। देश को अंधेरे में रखते थे।

पीएम ने कहा, 11 वर्ष पहले तक देश के सवा सौ जिले, 125 से ज्यादा, माओवादी आतंक से प्रभावित थे और आज ये संख्या सिर्फ 11 जिलों तक सिमट गई है। उस 11 में भी अब सिर्फ तीन जिले ही ऐसे बचे हैं, जो सबसे अधिक नक्सल प्रभावित हैं। सिर्फ पिछले 75 घंटों में 303 नक्सलियों ने हथियार डाले हैं। एक जमाने में जिनका 303 (गोली) चलता था, आज वो 303 सरेंडर हुए हैं। और ये कोई सामान्य नक्सली नहीं हैं, ये वो हैं जिनमें से किसी पर एक करोड़, किसी पर 25 लाख तो किसी पर 5 लाख का इनाम था।

पीएम मोदी ने कहा, नक्सली हिंसा के कारण मैं बेचैनी महसूस करता था, जबान पे ताला लगा के बैठा था, आज पहली बार मेरे दर्द को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। मैं उन माताओं को जानता हूं जिन्होंने अपने लाल खोए हैं। उन माताओं की अपने लाल से कुछ अपेक्षाएं थी। या तो वो ये माओवादी आतंकियों के झूठे बातों में फंस गए या तो माओवादी आतंक का शिकार हो गए। इसलिए, 2014 के बाद हमारी सरकार ने पूरी संवेदनशीलता के साथ भटके हुए नौजवानों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया।

आतंक पीड़ितों की दर्द की कहानी देश तक नहीं पहुंचने दी

प्रधानमंत्री ने कहा, अभी कुछ दिन पहले माओवादी आतंक के कई पीड़ित बड़ी संख्या में दिल्ली आए थे। इनकी दर्दनाक स्थिति थी। किसी की टांग नहीं थी, किसी का हाथ नहीं था, किसी की आंख नहीं थी, शरीर के अंग कुछ चले गए थे। ये माओवादी आतंक के शिकार लोग थे। गांव के गरीब, आदिवासी, भाई बहन, किसान के बेटे थे। माताएं-बहनें थीं। वो दिल्ली आए थे, 7 दिन रहे, हाथ-पैर जोड़ के कह रहे थे कि हमारी बात हिंदुस्तान के लोगों तक पहुंचाइए। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया लेकिन आपमें से किसी ने देखा या सुना नहीं होगा। क्योंकि माओवादी आतंक के ठेकेदारों ने उस जुल्म के शिकारों के दर्द की कथा भी हिंदुस्तान के लोगों तक नहीं पहुंचने दी। कांग्रेस के इकोसिस्टम ने इसकी बहुत चर्चा ही नहीं होने दी।

संविधान माथे पर लगाने वाले आज भी माओवादियों को बचा रहे

प्रधानमंत्री ने कहा, 11 साल पहले देश का करीब-करीब हर बड़ा राज्य माओवादी आतंक की चपेट में था। बाकी देश में संविधान लागू था…लेकिन लाल गलियारे में संविधान का कोई नाम लेने वाला नहीं था। पीएम ने राहुल गांधी का बिना नाम लिए कहा, जो लोग आज माथे पे संविधान की किताब लगाते हैं, वे आज भी माओवादी आतंकियों की रक्षा के लिए दिन रात लगा देते हैं।

लाल गलियारे में सरकार नहीं

सरकार तो चुनी जाती थी लेकिन लाल गलियारे में उसकी कोई मान्यता नहीं होती थी। शाम ढलते ही घर से बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता था। जनता को सुरक्षा देने के जिम्मेदार लोगों को खुद सुरक्षा की जरूरत पड़ती थी। बीते 50-55 वर्षों में इस माओवादी आतंक की वजह से हजारों लोग मारे गए, कितने ही सुरक्षाकर्मी माओवादी आतंक का शिकार बने। कितने ही नौजवानों को हमने खोया। ये नक्सली, ये माओवादी आतंकी स्कूल, अस्पताल नहीं बनाने देते थे। अगर बन जाए तो डॉक्टर को घुसने नहीं देते थे। जो बने हुए थे, उनको भी बम से उड़ा दिया जाता था।

आज युवा बस्तर ओलंपिक का आयोजन कर रहे हैं

प्रधानमंत्री ने कहा, कभी मीडिया की हेडलाइंस हुआ करती थीं कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में ये हुआ, वो हुआ, एक पूरी बस को उड़ा दिया, इतने सुरक्षा बल के जवान मारे गए। तब बस्तर नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। आज मैं उसी बस्तर का उदाहरण देता हूं, वहां के आदिवासी नौजवान बस्तर ओलंपिक का आयोजन कर रहे हैं और लाखों नौजवान बस्तर ओलंपिक में आके खेल के मैदान में ताकत दिखा रहें हैं।

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