पुतिन की प्लानिंग में फंसा पश्चिम, भारत-चीन और अमेरिका को लेकर क्या है रूस की योजना?
ढाई साल से भी लंबे समय से युद्धरत रूस के खिलाफ एकजुट होते पश्चिमी देशों की एक के बाद एक कार्रवाई, पाबंदियों और यूक्रेन को आर्थिक-सामरिक समर्थन के बावजूद क्रेमलिन कमजोर होता नजर नहीं आ रहा। बल्कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई प्लानिंग ने पश्चिम को एक तरह से पटकनी दी है।
ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी
मंगलवार से पुतिन रूस के कजान शहर में ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, तुर्किये के रेसेप तैय्यप एर्दोगन और ईरान के मसूद पेजेश्कियान के साथ गलबहियां करते दिखेंगे। इस सम्मेलन में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की बढ़ती मौजूदगी यह साफ करती है कि यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध में जुटे रहने और रूसी राष्ट्रपति के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने से, पुतिन को किनारे करने की योजना कारगर नहीं होगी।
पांच राष्ट्रों का ब्रिक्स
शुरुआत में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे पांच राष्ट्रों का ब्रिक्स गठित करने का उद्देश्य पश्चिमी दबदबे वाली दुनिया में एक संतुलन बनाना था। हालांकि, इस वर्ष इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई। जनवरी में ईरान, इजिप्ट, इथियोपिया और यूएई ब्रिक्स से जुड़ गए, जबकि तुर्किये, अजरबैजान और मलेशिया ने औपचारिक रूप से इसमें शामिल होने के लिए आवेदन कर दिया है। इसके अलावा कई अन्य देश भी इससे जुड़ने में अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं। रूस इसे एक बड़ी सफलता मान रहा है।
20 से ज्यादा द्विपक्षीय बैठकें
पुतिन के विदेश नीति के सहयोगी यूरी उशाकोव ने कहा है कि 32 देशों ने इसमें अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर दी है और 20 से ज्यादा देश अपने राष्ट्राध्यक्षों को इसमें भेजेंगे। इस दौरान पुतिन की 20 से ज्यादा द्विपक्षीय बैठकें होंगी और यह सम्मेलन रूस में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी नीति वाला कार्यक्रम साबित हो सकता है। क्रेमलिन की कसी रणनीतिविश्लेषकों की मानें तो क्रेमलिन इस सम्मेलन को दुनिया को दो तरह से दिखाना चाहता है।
सौदे पर बातचीत की व्यावहारिकता
पहला, पश्चिम के साथ लगातार तनाव के बीच क्रेमलिन अपने वैश्विक साझीदारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है, साथ ही रूस की अर्थव्यवस्था और उसके युद्ध प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए उनके साथ सौदे पर बातचीत की व्यावहारिकता भी चाहता है। जबकि इसमें शामिल होने वाले अन्य देशों के लिए यह अपनी आवाज बढ़ाने का एक मौका है।
रूस की योजना
कार्नेगी रसिया यूरेसिया सेंटर के निदेशक एलेक्जेंडर गबुयेव ने बताया कि क्रेमलिन भारत और चीन जैसे बड़े देशों के साथ व्यापार बढ़ाने और पश्चिमी प्रतिबंधों को दरकिनार करने की चर्चा करने में सक्षम होगा।
रूस एक नए पेमेंट सिस्टम में साथ देने के लिए भागीदार देशों का सहयोग मांग सकता है, जो ग्लोबल बैंक मैसेजिंग सिस्टम स्विफ्ट का विकल्प बने और मास्को को प्रतिबंधों की फिक्र किए बिना अपने सहयोगियों के साथ व्यापार करने में सक्षम बनाए।
रूस की योजना है कि अगर एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार हो जाता है, जिसमें चीन, भारत, रूस, ब्राजील और सऊदी अरब जैसे अमेरिका के भी महत्वपूर्ण साझीदार शामिल होते हैं, तो अमेरिका इसके पीछे नहीं पड़ेगा और अपनी अनुमति दे देगा।