बोचहां उपचुनाव के बाद सुस्त पड़ी बिहार की राजनीति में इफ्तार ने मचाई हलचल….
बोचहां उपचुनाव के बाद सुस्त पड़ी बिहार की राजनीति में इफ्तार ने हलचल मचा दी है। सदन में अक्सर तीखी नोक-झोंक करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच परस्पर सौहार्द देखने को मिला। इसने लोगों को सोचने का अवसर दिया और अपने-अपने तर्क गढ़ने का मौका भी। इफ्तार के बहाने दोनों के बीच दिखी नजदीकियां सत्ता में सहयोगी भाजपा के गले भी उतरती नहीं दिख रही। इस बीच भाजपा-जदयू के बीच तल्ख दिख रहे संबंधों में ये मुलाकातें उसे सशंकित कर रही हैं। हालांकि राजनीतिक चिंतक मानते हैं कि मुलाकातें सिर्फ मुलाकातें भर हैं, कोई गुल नहीं खिलाने वालीं।
बिहार में सत्ता में भाजपा और जदयू भले ही साथी हों, लेकिन दोनों के नेताओं के बीच अक्सर भिडंत होती ही रहती है। बोचहां उपचुनाव में भाजपा की जब करारी हार हुई और सीट राजद के हाथ लगी तो इन चर्चाओं ने भी काफी जोर पकड़ा कि जदयू नेताओं ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया। उसके वोट भाजपा को नहीं मिले, जिसका फायदा राजद ने उठाया। इस बीच गत शनिवार को राजद ने दावत-ए-इफ्तार का आयोजन कर डाला और उसमें नीतीश कुमार को भी आमंत्रित किया। किसी को भी आशा नहीं थी कि तेजस्वी के बुलावे पर नीतीश कुमार राबड़ी देवी के घर जाएंगे। लेकिन शाम को नीतीश कुमार अपने निवास से पैदल ही राबड़ी देवी के आवास चल दिए। राबड़ी देवी का आवास नीतीश के आवास के पीछे है और नेता प्रतिपक्ष अपनी मां के साथ ही उस घर में रहते हैं। दोनों घरों के बीच रेड कार्पेट बिछाई गई। पूरे घर ने गर्मजोशी से नीतीश का स्वागत किया। पांच साल बाद यह पहला मौका था, जब नीतीश राबड़ी के घर गए थे। नीतीश के इस कदम को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हवा में तैरने लगीं। नए समीकरण के कयास लगने लगे। तीन साल पहले अपने घर में नीतीश की ‘नो इंट्री’ का बोर्ड लगाने वाले तेजप्रताप ने महीना भर पहले ही ‘इंट्री चाचा’ का बोर्ड लगाया और नीतीश के जाने के बाद ट्वीट कर ‘अब बिहार में होगा खेला’ का हल्ला मचा दिया।
लेकिन नीतीश तो ठहरे नीतीश। गृह मंत्री अमित शाह के भोजपुर में दौरे के एक दिन पहले तेजस्वी के घर जाकर हलचल मचाई थी। अगले दिन पटना एयरपोर्ट पर अमित शाह के स्वागत में पहुंच गए। इसी के साथ सारे समीकरण गड्ड-गड्ड हो गए। फिर राजनीति अपनी पुरानी पटरी पर चलती दिखने लगी। लेकिन इस गुरुवार को जदयू की इफ्तार पार्टी का आयोजन हुआ तो लालू परिवार में सभी को अलग-अलग न्योता भेजा गया। राबड़ी देवी, तेजप्रताप व तेजस्वी के अलावा लालू के नाम भी कार्ड गया, इस आस के साथ कि जमानत मिलने के बाद हो सकता है कि वे भी पटना आ जाएं। हालांकि न तो लालू आए और न ही राबड़ी देवी गईं। तेजस्वी और तेजप्रताप उसमें शामिल हुए। हालांकि इस अवसर पर नीतीश और तेजस्वी दूर-दूर बैठे और दोनों में ज्यादा बातचीत नहीं हुई, लेकिन वापसी में दोनों साथ निकले और नीतीश उन्हें गाड़ी तक खुद छोड़ने गए। किसी ने इसे शिष्टाचार का हवाला दिया तो किसी ने भविष्य में खिलने वाले गुल का। दोनों ही जगह प्रदेश के बड़े भाजपा नेता भी शामिल हुए, लेकिन निगाहें कहीं और थीं।
इस समय बिहार में कामकाज पर चर्चा कम, नीतीश कुमार को लेकर ज्यादा है। कभी उनके राष्ट्रपति बनने, कभी उपराष्ट्रपति तो कभी केंद्रीय मंत्री बनने की हवा तैरती रही। राजनीतिक गलियारों से लेकर अफसर बिरादरी तक में कुछ होने वाला है, के स्वर बुलंद रहे। भाजपा और जदयू दोनों ही तरफ के नेताओं को बार-बार यह बयान देना पड़ा कि नीतीश कुमार कहीं नहीं जा रहे हैं। वे बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। इसके बाद इन अटकलों पर कुछ विराम लगा तो नीतीश-तेजस्वी की मुलाकातों ने एक नई पहेली गढ़ दी। भले ही इन मुलाकातों का कोई मतलब न हो, ये सिर्फ बस शिष्टाचार भर हो, लेकिन सोचने वालों को भरपूर कसरत का मौका खूब दिया इस बीच नीतीश ने।