महाराष्ट्र: बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच विपक्ष के लिए प्रासंगिक बने रहना चुनौती…

महाराष्ट्र: कांग्रेस, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) से मिलकर बनी महा विकास अघाड़ी या एमवीए पिछले साल के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गई थी। यह गठजोड़ राज्य की 288 सीटों में से केवल 46 सीटें ही जीत सका था। आइए जानते हैं वर्तमान में महराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य अब कैसे बदल रहा है।
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद विपक्ष अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए कठिन संघर्ष कर रहा है। राज्य में हाल के दिनों में बदलती वफादारी, पुनर्मिलन और खंडित गठजोड़ों का दौर दिखा है। कांग्रेस, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) से मिलकर बनी महा विकास अघाड़ी या एमवीए पिछले साल के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गई थी। यह गठजोड़ राज्य की 288 सीटों में से केवल 46 सीटें ही जीत सका था। अब अगली बड़ी चुनौती निकाय चुनाव है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को ओबीसी कोटा मुद्दे पर कई सालों से रुके पड़े चुनावों को चार सप्ताह में अधिसूचित करने का आदेश दिया है।
हालांकि, राज्य चुनावों के बाद एनसीपी (शपा) और शिवसेना (यूबीटी) को दलबदल की मार झेलनी पड़ रही है। कांग्रेस में, पुणे जिले के संग्राम थोपटे एकमात्र बड़े नेता थे जिन्होंने हाल ही में पार्टी छोड़ी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता रत्नाकर महाजन ने पीटीआई से कहा कि स्थिति की साझा समझ और चुनावी एकता के आधार पर ही विपक्ष को खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
विपक्ष के सामने अप्रासंगिक बनने का खतरा
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जब तक एक स्पष्ट नेतृत्व रणनीति और एकीकृत एजेंडा सामने नहीं आता, तब तक राज्य में विपक्ष के अप्रासंगिक होने का खतरा बना रहेगा। राज्य में भाजपा, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी के महायुति गठबंधन का प्रभुत्व है। एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती खुद को नये सिरे से तैयार करना है।”
उन्होंने कहा, “महंगाई, बेरोजगारी और किसान संकट जैसे मुद्दों पर जमीनी स्तर पर असंतोष मौजूद है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए कोई एक चेहरा या एकजुट ताकत नहीं है।” वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने कहा कि वरिष्ठ राजनेता शरद पवार के कदमों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।
हमेशा की तरह, शरद पवार का राजनीतिक रुख अस्पष्ट
उन्होंने पीटीआई से कहा, “कुंजी (पवार की बेटी) सुप्रिया सुले के पास है। हमेशा की तरह, शरद पवार अस्पष्ट हैं और उन्होंने अपने राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़े भतीजे अजित पवार के साथ फिर से जुड़ने के बारे में एक छिटपुट टिप्पणी करके हलचल मचा दी है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 84 वर्ष की उम्र में शरद पवार एनसीपी के गढ़ों में अपनी पार्टी को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच, वे सुले के नेतृत्व में उत्तराधिकार योजना भी तैयार कर रहे हैं। दूसरी ओर, दलबदल भले ही कांग्रेस कीसबसे बड़ी चुनौती न हो, लेकिन पार्टी नए विकल्प तलाश रहे युवा मतदाताओं को आकर्षित करने में संघर्ष कर रही है। महाराष्ट्र की राजनीति में कभी ताकतवर रही पार्टी ने अब केवल विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में ही अपना प्रभाव बरकरार रखा है।
शिवसेना (यूबीटी) को मुंबई और कोंकण क्षेत्र के कुछ हिस्सों में बाल ठाकरे की ओर से स्थापित शिवसेना के पारंपरिक मतदाताओं के बीच भावनात्मक समर्थन प्राप्त है। हालांकि 2022 में शिंदे की ओर से पार्टी के विभाजन के बाद इसकी संगठनात्मक ताकत कम हो गई है। एक विश्लेषक ने कहा कि देश के सबसे अमीर नगर निकाय बृहन्मुंबई नगर निगम पर नियंत्रण की लड़ाई, जिस पर दो दशकों से अधिक समय तक अविभाजित शिवसेना का शासन रहा है, ठाकरे के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती होगी।
विपक्ष के पास अगले विधानसभा चुनाव के लिए साढ़े चार साल का समय
एक पर्यवेक्षक ने कहा, “विपक्ष के पास अगले विधानसभा चुनावों के लिए साढ़े चार साल का समय है। हालांकि, अगर कोई सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए, तो 2029 के चुनाव फिर से सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में हो सकते हैं। फिलहाल, विपक्ष स्थानीय निकाय चुनावों पर निर्भर है।”
महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने पीटीआई से कहा कि उनकी पार्टी भाजपा से लड़ना जारी रखेगी और उन लोगों को साथ लेगी जो “लोकतंत्र और संविधान की रक्षा” करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जिनमें साहस और अगले चार वर्षों तक संघर्ष करने की ताकत होगी, वे एमवीए में बने रहेंगे।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे और उनके राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़े चचेरे भाई उद्धव के बीच संभावित सुलह की चर्चा ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया आयाम जोड़ दिया है। हालांकि कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों भाई सहयोग के तरीके तलाश रहे हैं, खासकर मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) में, जहां दोनों पार्टियों का मराठी मतदाताओं पर प्रभाव है।
मराठी वोटों को एकजुट करने की कोशिश में उद्धव
एक पर्यवेक्षक ने कहा, “अपनी पार्टी में विभाजन के बाद, उद्धव मराठी वोटों को एकजुट करने के लिए उत्सुक हैं। हाल के वर्षों में सीमित चुनावी सफलता के बावजूद, एमएनएस अब भी शहरी मराठी भाषी मतदाताओं, खासकर मुंबई, ठाणे और नासिक में प्रभाव बनाए हुए है।” हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राज ठाकरे का राजनीतिक रुख अप्रत्याशित हो सकता है। एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, “विधानसभा चुनावों के बाद राज ठाकरे भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन से दूर होते दिख रहे हैं। (पिछले साल के) लोकसभा चुनावों में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था।”
हाल ही में उन्होंने कक्षा एक से हिंदी अनिवार्य करने के सरकार के फैसले का विरोध किया था। एक राजनीतिक विश्लेषक ने बताया कि पहलगाम हमले के बाद उन्होंने केंद्र पर निशाना साधते हुए टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि यदि रणनीतिक रूप से प्रबंधन नहीं किया गया तो दोनों ठाकरे परिवार को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
मनसे महासचिव वागीश सारस्वत ने कहा, “इस दिशा में अभी तक कोई आधिकारिक बातचीत नहीं हुई है।” सपकाल ने कहा कि पवार और ठाकरे परिवार से जुड़ी चर्चा पर अभी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा, “अगर दो पार्टियां और दो भाई फिर से एक हो जाएं तो किसी आपत्ति की जरूरत नहीं है। कांग्रेस की विचारधारा ‘भारत जोड़ो’ है। कांग्रेस लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए खड़ी होने वाली किसी भी पार्टी का समर्थन करेगी।” उन्होंने कहा कि नगर निकाय चुनावों के लिए गठबंधन पर निर्णय स्थानीय स्तर पर लिया जाएगा।