महाराष्ट्र: बिना ट्रायल कैद करना प्री-ट्रायल सजा के बराबर

बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि न्याय व्यवस्था में जमानत को नियम माना जाता है और उसे मना करना अपवाद की स्थिति है। कोर्ट ने आगे कहा कि किसी आरोपी को लंबे समय तक ट्रायल के बिना जेल में रखना असल में ‘प्री-ट्रायल सजा’ देने जैसा है, जो संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हनन है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा है कि न्याय व्यवस्था में बेल (जमानत) को नियम माना जाता है और उसे मना करना अपवाद की स्थिति है। कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को लंबे समय तक ट्रायल के बिना जेल में रखना असल में ‘प्री-ट्रायल सजा’ देने जैसा है, जो संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हनन है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की पीठ ने की, जब उन्होंने हत्या के एक मामले में आरोपी विकास पाटिल को जमानत दी। पाटिल पर 2018 में अपने भाई की हत्या का आरोप है और वह पिछले छह सालों से जेल में बंद था। कोर्ट ने कहा कि अब ट्रायल पूरे होने में बहुत लंबा वक्त लग रहा है और जेलों में भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है।
जेलों में हालात चिंताजनक
न्यायमूर्ति जाधव ने आर्थर रोड जेल के दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया कि जेल में क्षमता से छह गुना ज्यादा कैदी हैं। हर बैरक, जिसे सिर्फ 50 कैदियों के लिए बनाया गया है, उसमें अब 220 से 250 कैदी ठूंसे गए हैं। कोर्ट ने सवाल उठाया कि ऐसे हालात में न्यायपालिका को कैसे संतुलन बनाए रखना चाहिए – एक तरफ अपराध की गंभीरता और दूसरी तरफ आरोपी के मौलिक अधिकार।
‘बेल नियम है, मना करना अपवाद’
कोर्ट ने साफ कहा कि बेल का सिद्धांत यही है कि जमानत मिलना सामान्य बात होनी चाहिए, और उसे खारिज करना सिर्फ विशेष परिस्थितियों में होना चाहिए। न्यायमूर्ति जाधव ने दो अंडरट्रायल कैदियों की तरफ से लिखे गए लेख ‘प्रूफ ऑफ गिल्ट’ का हवाला दिया, जिसमें पूछा गया था कि आखिर कितने लंबे इंतजार के बाद किसी व्यक्ति का तेज और निष्पक्ष ट्रायल का अधिकार खत्म हो जाता है। कोर्ट ने माना कि केवल लंबे समय से जेल में बंद होना ही बेल का आधार नहीं बन सकता, लेकिन यह एक अहम मुद्दा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अभियोग पक्ष के रवैये में बदलाव की जरूरत
न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि अभियोजन पक्ष को भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। वे अक्सर यह मानकर बेल का विरोध करते हैं कि अपराध गंभीर है, इसलिए बेल नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन कानून का मूल सिद्धांत है कि जब तक दोष सिद्ध न हो, आरोपी को निर्दोष माना जाता है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने विकास पाटिल के केस में कहा कि वह छह साल से जेल में है और निकट भविष्य में ट्रायल के शुरू होने या खत्म होने की कोई संभावना नहीं दिख रही। ऐसे में उसे जमानत देना उचित है।
न्याय और आजादी का संतुलन जरूरी
कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक ट्रायल का इंतजार करने वाले कैदियों की आज़ादी और उनके इंसानी अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। वरना ये सिर्फ सुरोगेट सजा बनकर रह जाता है, जो कानून और संविधान के खिलाफ है।