
विभाग की महिलाओं के लिए चलाई जा रहीं तमाम स्वास्थ्य योजनाएं को तब झटका लगता है, जब रात में महिला अस्पताल पहुंचने वाली गर्भवतियों को मां बनने के लिए रेफर होने का भी दर्द झेलना पड़ता है। इसकी वजह है शहर के एकमात्र महिला अस्पताल में रात की शिफ्ट में स्टाफ की कमी। इससे अस्पातल में प्रसव की दर गिर गई है।
महिला अस्पताल में रात की शिफ्ट में स्टाफ की कमी है। वर्तमान में एसएनसीयू के लिए सात सिस्टर और एक मेडिकल अधिकारी की जरूरत है। यहां एसएनसीयू में 10 में से केवल तीन कर्मी तैनात हैं। गायनी की चार महिला डॉक्टर हैं, उसमें एक रेगुलर रामनगर में सेवा दे रही हैं। एक अवकाश पर रहती हैं। सिर्फ दो महिला डॉक्टरों के भरोसे एक मात्र महिला अस्पताल चल रहा है। इस कारण प्री-मैच्योर डिलीवरी, कम वजन, डायबिटीज, सांस की दिक्कत, धड़कन का बढ़ना आदि गंभीर मामले में हर रोज गर्भवतियों को सुशीला तिवारी अस्पताल रेफर किया जा रहा है। महिला अस्पताल में सिर्फ फोटोथेरेपी हो रही है। सीएमओ डॉ. एचसी पंत का कहना है कि जल्द आउटसोर्स के माध्यम से स्टॉफ मुहैया कराया जा रहा है।
दुश्वारियां झेलती हैं गर्भवती
दो गर्भवती हर रोज सुशीला तिवारी अस्पताल रेफर हो रही हैं। रात के समय महिला अस्पताल पहुंचने वाली गर्भवती को तब और ज्यादा दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है जब रेफर होने पर जल्द कोई साधन नहीं मिलता है। ऐसे में कई बार सड़क पर इंतजार करने की नौबत आ जाती है। दूसरे अस्पताल पहुंचने से पहले आधे रास्ते में ही प्रसव पीड़ा होने पर खतरा बना रहता है। कई बार मौसम खराब होने या रेफर हुए अस्पताल में महिला डॉक्टर के नहीं मिलने पर गर्भवती की जान पर भी बन आती है।
हर माह 60 से 70 गर्भवती प्रसव से पहले रेफर हो रही हैं। इस कारण अस्पताल में डिलीवरी संख्या में कमी आ गई है। यहां हर रोज 50 से अधिक डिलीवरी होती थीं। -डॉ. ऊषा जंगपांगी, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, महिला अस्पताल
एक साल में प्रतिमाह प्रसव के मामले-
अप्रैल 2024- 207
मई – 273
जून – 295
जुलाई- 305
अगस्त – 396
सितंबर – 393
अक्तूबर- 338
नवंबर – 323
दिसंबर – 267
जनवरी 2025- 338
फरवरी – 278
मार्च – 247
अप्रैल – 193