मॉस्को पर ‘पर्ल हार्बर’ जैसा हमला टला, किस वजह से यूक्रेन को रोकना पड़ा था अटैक?

ड्राइवर्स की कमी के कारण यूक्रेन को मॉस्को के बॉम्बर फ्लीट पर ‘पर्ल हार्बर’ जैसा बड़ा हमला टालना पड़ा। हमले की तारीख 9 मई तय थी। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, यह ऑपरेशन स्पाइडरवेब का हिस्सा था। रूसी ट्रक ड्राइवर्स को ड्रोन्स लॉन्च पॉइंट्स तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन छुट्टियों के कारण ड्राइवर्स की कमी हो गई। SBU अधिकारियों ने मिशन को रिस्की मानकर टाल दिया।
रूस की राजधानी मॉस्को में पर्ल हार्बर जैसा हमला टल गया है। दरअसल ड्राइवर्स की कमी की वजह से यूक्रेन को मॉस्को के बॉम्बर फ्लीट पर अपना बड़ा हमला टालना पड़ा। एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। यह हमला ‘पर्ल हार्बर’ स्टाइल का था, जो रूस की हवाई ताकत को नुकसान पहुंचाने और क्रेमलिन को शर्मिंदा करने के लिए प्लान किया गया था।
कीव ने इस साल की शुरुआत में गुपचुप तरीके से ड्रोन्स रूस में भेजे थे। हमले की तारीख रूसी विक्ट्री डे, यानी 9 मई तय थी। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, यह ऑपरेशन स्पाइडरवेब का हिस्सा था, जो SBU की अब तक की सबसे साहसिक मिशन थी।
मिशन की प्लानिंग में लगे 18 महीने
इस मिशन की प्लानिंग में 18 महीने लगे, जिसमें छल-कपट, हाई-टेक टेक्नोलॉजी का सहारा लिया गया। हमले के लिए ड्रोन्स को लॉन्च पॉइंट्स तक पहुंचाने की जिम्मेदारी रूसी ट्रक ड्राइवर्स पर थी, जो अनजाने में लकड़ी के केबिन्स समझकर उन्हें ट्रांसपोर्ट कर रहे थे।
लेकिन विक्ट्री डे, रूसी लेबर डे और ऑर्थोडॉक्स ईस्टर जैसे छुट्टियों की वजह से एक्टिव ड्राइवर्स की कमी हो गई। SBU अधिकारियों ने बताया कि ड्राइवर्स का पूल इतना छोटा था कि मिशन को रिस्की मानकर टालना पड़ा। आखिरकार मई के आखिर में सही ड्राइवर्स मिले।
SBU की चालाकी
ऑपरेशन के दौरान कई मुश्किलें आईं। एक बार एक ड्राइवर ने केबिन की छत गिरी हुई देखी और अंदर ड्रोन्स नजर आ गए। उसने तुरंत अपने एम्प्लॉयर आर्टेम टिमोफीव से संपर्क किया, जो 37 साल का यूक्रेनी था और रूस में रहता था।
टिमोफीव SBU के साथ काम कर रहा था और उसने ड्रोन्स को अपनी पत्नी के साथ असेंबल किया था। SBU की सलाह पर उसने अनजान बनते हुए बहाना बनाया कि ये केबिन्स हंटिंग लॉज हैं और ड्रोन्स जानवरों को ट्रैक करने के लिए इस्तेमाल होते हैं।
एक ट्रक में मैकेनिकल खराबी आ गई, जिसे SBU और टिमोफीव ने मिलकर ठीक किया। उन्होंने कार्गो को दूसरे वाहन में शिफ्ट कर दिया। इसके अलावा, दो ड्रोन-लोडेड केबिन्स से कम्युनिकेशन टूट गया। रिमोट इंस्ट्रक्शन्स देने की कोशिश नाकाम रही और डर था कि मिशन फेल हो जाएगा।
फिर रिपोर्ट्स से पता चला कि उन केबिन्स में आग लग गई थी, जिससे ड्रोन्स फट गए और ड्राइवर की मौत हो गई। इन सबके बावजूद ऑपरेशन कामयाब रहा। 1 जून की सुबह चार ट्रकों से 100 से ज्यादा ड्रोन्स लॉन्च किए गए, जो चार रूसी एयरफील्ड्स पर हमला करने के लिए भेजे गए।




