
राजस्थान में स्कूल पाठ्यक्रम में मुगलों के इतिहास के बाद आदिवासी नायकों के योगदान को कम करके दिखाए जाने पर भी विवाद छिड़ गया है। वहीं शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा है कि राज्य की नवीन पाठ्यपुस्तकों में आदिवासी अंचल के इतिहास और योगदान की उपेक्षा संबंधी समाचार भ्रामक हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि नई पुस्तकों में मानगढ़ धाम, गोविन्द गुरु, वीरबाला कालीबाई, और आदिवासी लोक संस्कृति को प्राथमिकता से शामिल किया गया है। दिलावर ने कहा, “किताबों में आदिवासी योगदान को सम्मानपूर्वक स्थान मिला है।”
राजस्थान में लागू की गई नई शिक्षा नीति के तहत तैयार की गई पाठ्यपुस्तकों में आदिवासी विरासत, जननायकों और सांस्कृतिक धरोहरों को समुचित स्थान दिया गया है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्पष्ट किया कि कक्षा 5 की पर्यावरण अध्ययन की पुस्तक ‘हमारा परिवेश’ के अध्याय 15 ‘हमारे प्रेरक’ में मानगढ़ धूणी और गोविंद गुरु के बलिदान की गाथा को प्रमुखता से शामिल किया गया है।
इसी क्रम में वीरबाला कालीबाई की प्रेरणादायी कहानी को कक्षा 7 की ‘हमारा राजस्थान’ की पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है, जहां उन्हें आदिवासी वागड़ क्षेत्र के अन्य जननायकों भोगीलाल पंड्या और नानाभाई खाट सेंगाभाई के साथ स्थान दिया गया है। इतना ही नहीं, कक्षा 1 से 5 के छात्रों के लिए तैयार ग्रेडेड स्टोरी कार्ड्स में भी कालीबाई की कहानी को जोड़ा गया है, ताकि छोटी कक्षाओं के विद्यार्थी भी इस योगदान से परिचित हो सकें।
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शिक्षा मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF) 2023 और राज्य पाठ्यचर्या (SCF) 2023 के अनुरूप पाठ्यपुस्तकों में स्थानीयता, भाषाई विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को विशेष महत्व दिया गया है।
उदाहरणस्वरूप, कक्षा 3 की हिंदी पुस्तक के अध्याय ‘मातृकुंडिया की यात्रा’ में मेवाड़ की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता, बनास नदी, मंगलेश्वर महादेव और घूमर लोकनृत्य का उल्लेख किया गया है। वहीं कक्षा 4 की हिंदी पुस्तक में ‘धरती राजस्थान की’ नामक कविता में राजस्थानी त्योहारों और लोक नृत्यों को सम्मिलित किया गया है।
इसके साथ ही, कक्षा 4 की पर्यावरण अध्ययन पुस्तक के अध्याय में महाराणा प्रताप, राणा पूंजा और दानवीर भामाशाह जैसे ऐतिहासिक और प्रेरक व्यक्तित्वों के योगदान को भी विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कहा कि इन सभी प्रयासों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विद्यार्थी न केवल राष्ट्रीय स्तर की जानकारी प्राप्त करें, बल्कि अपने स्थानीय नायकों, परंपराओं और भाषाओं से भी गहराई से जुड़ सकें।