
राजस्थान में बाघों में अंत: प्रजनन की दर सबसे ज्यादा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन्हें जल्द ही रिलोकेट नहीं किया गया तो अगले 20 से 30 सालों में यहां इन बड़ी बिल्लियों में प्रजनन संबंधित गंभीर समस्याएं पैदा होंगी, जिससे इनका अस्तित्व खतरे में आ जाएगा।
राजस्थान में बीते तीन दिनों में बाघों के कुनबे में नए मेहमानों के आने का सिलसिला जारी है। नाहरगढ़ बॉयोलोजिक पार्क, सरिस्का और रणथंभौर में तीन बाघिनों ने 10 से ज्याद शावकों को जन्म दिया है। वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह बड़ी खुशी का मौका है लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी चिंता भी परेशान कर रही है कि राजस्थान में ज्यादातर बाघों की ब्लड लाइन एक ही है।
नेशनल सेंटर ऑफ बॉयोलोजिकल साइंसेज की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में राजस्थान के बाघों में अंत: प्रजनन की दर किसी अन्य राज्य के मुकाबले सबसे ज्यादा पाई गई है। यह इसलिए है क्योंकि राजस्थान में टाइगर सेंचुरीज में कुल 121 बाघ हैं, उनमें से 75 प्रतिशत रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से हैं, जो एक ही ब्लड लाइन से आते हैं।
आरटीआर के पूर्व फील्ड डायरेक्टर मनोज पाराशर का कहना है कि राजस्थान में सभी बाघ अभ्यारण्यों में बाघों में अंत: प्रजनन हो रहा है क्योंकि यहां सरिस्का और मुकुंदरा बाघ अभ्यारण्य में भी आरटीआर से ही बाघ रिलोकेट किए गए हैं। इसलिए इस बात की संभावना बेहद कम है कि कोई बाहरी बाघ इनके संपर्क में आया होगा।
उन्होंने बताया कि अगर यहां अन्य दूसरे राज्यों के अन्य ब्लड लाइन के बाघ नहीं लाए गए तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि अगले 20 से 30 सालों में यहां बाघों में अंत: प्रजनन से बीमारी और प्रजनन संबंधित समस्याएं बढ़ जाएंगी। इसलिए नए जीन पूल को तैयार करने की बेहद आवश्यकता है।
वन विभाग ने इन राज्यों से मांगी मदद
राजस्थान के वन मंत्री संजय शर्मा ने इस संबंध में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर राजस्थान और अन्य राज्यों के बाघों को एक-दूसरे के यहां रिलोकेट करने की मांग की है। उन्होंने बताया कि एनटीएसीए ने 2023 में भी 2 बाघिनों को ट्रांसलोकेट करने की अनुमति दी थी लेकिन अब तक यह मामला लंबित है। मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राजस्थान ने उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से एक नर बाघ व दो बाघिन राजस्थान में रिलोकेट करने की मांग की है। इसके लिए इन राज्यों को पत्र लिखे गए हैं।