हिंदी अब किताबों से निकलकर वेब पर भी अपनी छटा बिखेर रही है। आज एआई से लेकर सोशल मीडिया हर जगह हिंदी की मांग है, ऐसे में हिंदी से जुड़े अनुवादकों की मांग भी बढ़ी है।
मौजूदा युग डिजिटल व एआई का युग है। हिंदी अब किताबों से निकलकर वेब पर भी अपनी छटा बिखेर रही है। आज एआई से लेकर सोशल मीडिया हर जगह हिंदी की मांग है, ऐसे में हिंदी से जुड़े अनुवादकों की मांग भी बढ़ी है। इसका कारोबार 2030 तक 8,120 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। हिंदी लिखने में समय की बचत हुई है। मोबाइल के सामने बोलकर हिंदी को कम समय में लिखा जा सकता है, जबकि एआई भी शब्दों को मिलाकर सामने रखने में सक्षम है। इंटरनेट के फैलाव ने भी हिंदी के दायरे बदल दिए हैं।
उधर, भाषा विशेषज्ञ बताते हैं कि आज से 50 साल पहले हिंदी के क्षेत्र में काम करना आसान नहीं था। लेखक माध्यम तलाश रहे होते थे। प्रकाशन के लिए संस्थानों के चक्कर काटने पड़ते थे। आज एआई की मदद से हर व्यक्ति लेखक-संपादक स्वयं बना है। डिजिटल युग ने गांव-शहर, ऊंच-नीच और प्रतिष्ठा के दायरे को खत्म कर दिया है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, एक्स, अमेजन पर उनकी रचनाओं, कविताओं, पाठन, किताबों को सराहना व पहचान मिली है।
डिजिटल युग में आसमां छू रही हिंदी
सोशल मीडिया पर किताबगंज नामक कविता पेज से मशहूर कवि व आईआरएस अधिकारी प्रशांत सागर बताते हैं कि मौजूदा समय में हर किसी को लिखने की आजादी है। मानव संस्कृति में पहली बार ऐसा हुआ है कि लोग अपना जिया हुआ लिख रहे हैं। लिखे हुए को सराहने के लिए पाठक भी हैं। हिंदी अब धीरे-धीरे लोगों के हाथ में आ चुकी है। पिछले 100 वर्षों में जितना साहित्य नहीं लिखा गया, इंटरनेट के आ जाने से हर साल उतना साहित्य पढ़ा-लिखा जा रहा है।
हर जाति व वर्ग के व्यक्ति जिनके पास इंटरनेट है, वह लिख रहे हैं। इसके साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को भी बढ़ावा मिल रहा है। वह कहते हैं कि एक दौर था, जब केवल किताबें साहित्य थीं और उन्हें खरीदने के लिए हर वर्ग की आर्थिक स्थिति इजाजत नहीं देती थी। आज के समय में हिंदी आसमां छू रही है।
इंटरनेट ने लगाए हिंदी के विस्तार को पंख, बोलकर लिखना भी संभव
दिल्ली विश्वविद्यालय के अंबेडकर कॉलेज में हिंदी विभाग में प्रो. शशि शर्मा बताती हैं कि किताबों के प्रकाशन ने साहित्य को लोगों तक पहुंचाया। वहीं, रेडियो और टेलीविजन के आ जाने से हिंदी का दायरा पढ़े-लिखे लोगों से निकलकर उन लोगों तक भी पहुंच गया जो हिंदी को सिर्फ बोल-समझ सकते थे।
जैसे ही इंटरनेट आया, हिंदी के विस्तार को मानो पंख से लग गए। आज फोन हर किसी की पहुंच में है, इंटरनेट भी सस्ता है। आज हर व्यक्ति लेखक-संपादक स्वयं ही है। यूट्यूब, एक्स, फेसबुक व तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इंटरनेट की मदद से किसी भी भाषा में लिखा हुआ हिंदी में अनुवाद किया जा सकता है। इसकी मदद से बोलकर लिखना भी संभव हुआ है।