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सलमान रुश्दी की विवादित किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के इंपोर्ट से हटा बैन

दिल्ली हाईकोर्ट ने सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब द सैटेनिक वर्सेज के इम्पोर्ट मामले पर आज सुनवाई की। दिल्ली हाई कोर्ट ने लेखक सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज के आयात पर प्रतिबंध लगाने के भारत सरकार के फैसले को पलट दिया है। कोर्ट ने कहा कि अफसर बैन को लेकर कोई भी नोटिफिकेशन पेश करने में नाकाम रहे। इसलिए यह माना जाना चाहिए कि यह मौजूद नहीं है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के इम्पोर्ट मामले पर आज सुनवाई की। हाईकोर्ट ने इंपोर्ट पर लगा बैन अब हटा दिया है। कोर्ट ने कहा कि अफसर बैन को लेकर कोई भी नोटिफिकेशन पेश करने में नाकाम रहे। इससे माना जा सकता है कि बैन का आदेश मौजूद ही नहीं है।

दरअसल राजीव गांधी ने 1988 में सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेस’ के इम्पोर्ट पर बैन लगाया था। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। जस्टिस रेखा पल्ली और सौरभ बनर्जी की बेंच ने यह फैसला बीते 5 नवंबर को सुनाया था।

कोर्ट ने कहा, नहीं मौजूद है कोई नोटिफिकेशन
अदालती आदेश के अनुसार, ”भारत सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि आयात प्रतिबंध आदेश “सही नहीं था, इसलिए इसे प्रस्तुत नहीं किया जा सका।” अदालत ने कहा कि उसके पास “यह मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है।

‘सरकारी वेबसाइटों पर बैन को लेकर नहीं मिला आदेश’
याचिकाकर्ता संदीपन खान के वकील उद्यम मुखर्जी ने कहा, “प्रतिबंध 5 नवंबर को हटा लिया गया है क्योंकि कोई अधिसूचना नहीं है।” खान की याचिका में आगे कहा गया है कि उन्होंने किताब की दुकानों पर यह बताए जाने के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया कि उपन्यास को भारत में बेचा या आयात नहीं किया जा सकता है और फिर जब उन्होंने खोजा, तो उन्हें सरकारी वेबसाइटों पर आधिकारिक आयात प्रतिबंध आदेश नहीं मिला।

दिल्ली हाई कोर्ट ने पलटा फैसला
बेंच में सुनवाई के दौरान जस्टिस सौरभ बनर्जी भी शामिल थे। कोर्ट ने, यहां तक ​​कि अदालत में भी सरकार आदेश पेश करने में असमर्थ रही है। कोर्ट ने यह तक कहा, ‘उपर्युक्त परिस्थितियों के मद्देनजर, हमारे पास यह मानने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है, ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है, और इसलिए, हम इसकी वैधता की जांच नहीं कर सकते और रिट याचिका को निष्फल मानकर उसका निपटारा करते हैं।’

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