अध्यात्म

साल के पहले शनि प्रदोष व्रत जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत बहुत फलदायी माना गया है। यह दिन देवों के देव महादेव को समर्पित है जो लोग इस दिन कठिन व्रत के साथ विधिवत पूजा-पाठ करते हैं उन्हें सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस बार यह व्रत (Pradosh Vrat 2025) 11 जनवरी यानी आज के दिन रखा जा रहा है तो चलिए इस दिन की कुछ जरूरी बातों को जानते हैं।

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को बहुत विशेष माना गया है। ये व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। यह प्रत्येक माह में दो बार रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा होती है। कहते हैं कि इस दिन सच्चे भाव से पूजा-पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही घर में सुख-समृद्धि का वास रहता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, दिन शनिवार यानी आज 11 जनवरी को शनि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2025) रखा जा रहा है। इस दिन शाम के समय की पूजा का विशेष महत्व है।

साथ ही कहते हैं कि यह व्रत तभी पूरा होता है, जब इसकी कथा का पाठ किया जाए। ऐसे में जो लोग व्रत कर रहे हैं, उन्हें इस दिन की वृत कथा जरूर पढ़नी चाहिए, जो इस प्रकार है –

शनि प्रदोष व्रत की कथा (Shani Pradosh Vrat Katha in Hindi)

प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी निवास करती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था, जिस वजह से वो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो नन्हे बालक दुखी अवस्था में मिलें, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी। वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के पश्चात वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ”हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।” यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ”हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।” जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई। दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई।

प्रदोष व्रत के पुण्य प्रताप से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से मिल गया। इससे खुश होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।

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