सीमा विवाद पर क्यों नरम पड़ा ड्रैगन? जाने चीन के विदेश मंत्री की भारत यात्रा के क्या हैं असली मायने
रूस और यूक्रेन जंग का असर अब वैश्विक संबंधों पर भी दिखना शुरू हो गया है। इस युद्ध के चलते विभिन्न देशों के सामरिक संबंधों पर इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर देखने को मिल रहा है। पूर्वी लद्दाख में भारत के प्रति चीन के व्यवहार में आए बदलाव को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की उदारता के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर रूस है। आखिर पूर्वी लद्दाख में चीन के इस दृष्टिकोण के बदलाव के पीछे क्या बड़ी वजह है। इसका रूस यूक्रेन जंग से क्या संबंध है। रूस ने चीन पर भारत के प्रति नरम रवैये को लेकर क्यों दबाव डाला। आइए जानते हैं कि क्या इस पूरे मामले में विशेषज्ञों की क्या राय है।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि दरअसल, चीन के विदेश मंत्री वांग यी की इस महीने की यात्रा के ऐलान के बाद इस तरह के सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वांग की यात्रा का मकसद भारत और चीन के साथ आपसी संबंधों को बहाल करेगा। चीन के रुख में अचानक इस बदलाव को यूक्रेन और रूस युद्ध से जोड़कर देखा जा रहा है। इसमें कोई अचरज भी नहीं है। इसके कई कारण भी है।
2- उन्होंने कहा कि रूस और यूक्रेन जंग में एक बाद तो स्थापित हो गई कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। रूस यूक्रेन के बीच चल रहे लंबे संघर्ष के बाद भी अब तक समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं निकल सका। उन्होंने कहा कि जैसे अफगानिस्तान में अमेरिका की स्थिति थी, वैसे ही हालात यूक्रेन में रूस के लिए पैदा होते जा रहे है। रूस एक महाशक्ति है। इसके बावजूद रूसी सेना करीब चार सप्ताह से यूक्रेनी सेना से जूझ रही हैं। इस जंग में दोनों पक्षों की अपार क्षति हुई है।
3- इस युद्ध का एक और असर पड़ा है, जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए घाटे का सौदा हो सकता है। आम रूसी जिस तरह से इस युद्ध की मुखालफत कर रहा है उससे पुतिन की सत्ता अस्थिर हो सकती है। पुतिन के इस फैसले का विरोध रूस में हो रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी इस युद्ध से सबक जरूर लिए होंगे। भारत के साथ अनावश्यक सीमा विवाद और जंग की धमकी देने वाले चिनफिंग को यह बात समझ में आ गई है कि सीमा विवाद का निस्तारण भारत के साथ जंग लड़कर नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब भारत एक परमाणु संपन्न राष्ट्र है। भारत की रूस के साथ गहरी दोस्ती है इसके अलावा अमेरिका भी नई दिल्ली को निकट सहयोगी मानता रहा है।
4- चीन यह जानता है कि भारत को रूस और अमेरिका का जबरदस्त समर्थन हासिल है। रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत के स्टैंड से यह साफ हो गया कि नई दिल्ली और मास्को के रिश्ते में कोई तीसरा देश आड़े नहीं आ सकता। दोनों के बीच गहरी दोस्ती है। सुरक्षा परिषद में भारत ने अमेरिका को नाखुश करते हुए मतदान प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया। इसके गहरे मायने हैं। इसका असर भारत चीन संबंधों पर पड़ना लाजमी है। चीन यह जान चुका है कि युद्ध की स्थिति में रूस बीजिंग के पक्ष में नहीं खड़ा होगा। इतना ही नहीं अमेरिका भी चीन के खिलाफ खड़ा है और ऐसे मौके तलाश रहा है।
5- उन्होंने कहा कि इसका एक अन्य प्रमुख कारण यह भी है कि हाल में पाकिस्तानी सीमा में भारतीय मिसाइल गिरने के मामले में अमेरिका ने नई दिल्ली को क्लिन चीट दी है उससे चीन दंग है। रूस यूक्रेन जंग भारत के रुख के बाद चीन को यह संभावना थी कि अमेरिका और भारत के संबंधों में दरार आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चीन को यह बात समझ में रही है कि भारत रूस और अमेरिका की जरूरत है। दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और क्वाड में भारत का एक प्रमुख रोल है। इसलिए अमेरिका किसी भी हाल में भारत का साथ नहीं छोड़ना चाहता। उन्होंने कहा कि हालांकि, भारत अमेरिका संबंधों के बेहतर होने के कई अन्य कारण भी है, लेकिन सामरिक कारणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसलिए रूस का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष चीन पर दबाव होगा कि वह भारत चीन सीमा विवाद का निस्तारण शांति से करें।
6- यूक्रेन में जंग शुरू करने के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन विश्व बिरादरी के सामने मजबूत दिखना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच खड़े होकर बीजिंग से पश्चिमी जगत को बड़ा संदेश देना चाहते हैं। यह ब्रिक्स और आरआईसी (रूस, भारत, चीन) फोरम के जरिए ही संभव है। इन दोनों की शिखर बैठकों की मेजबानी इस समय चीन के पास है, लेकिन, एलएसी के मुद्दे पर भारत साफ कर चुका है कि बैठक में मोदी की हिस्सेदारी सरहद पर तनाव खत्म करने पर ही हो सकती है। इसलिए चीन अब नरम पड़ चुका है। मास्को एग्रीमेंट लागू कर समस्या सुलझ सकती है।
7- उन्होंने कहा कि जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा 19 मार्च को भारत आ रहे हैं। इसे देखते हुए रूस और चीन तत्काल कूटनीतिक कदम उठाना चाहते हैं। खास बात यह है कि किशिदा क्वाड बैठक में मोदी की भागीदारी के लिए आ रहे हैं। यह बैठक जापान की राजधानी टोक्यो में जून में होनी है, जहां मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति एक मंच साझा करेंगे। रूस की कोशिश है कि उसी दौरान विश्व के तीन शक्तिशाली नेताओं के रूप में मोदी-पुतिन-चिनफिंग एक साथ एक मंच पर मौजूद रहें।