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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कोटा के भीतर कोटा को मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने कोटा के भीतर कोटा को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि राज्यों को कोटा के भीतर कोटा देने के लिए एससी, एसटी में सब कैटेगरी बनाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत से ये फैसला दिया है। अदालत के फैसले के बाद यह तय हो गया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने ये फैसला सुनाया।

 इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है. हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए।

कोर्ट के फैसले से पंजाब अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2006 और तमिलनाडु अरुंथथियार अधिनियम पर मुहर लग गई है। इससे पहले 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में फैसला दिया था कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं। पंजाब सरकार का तर्क था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के तहत यह स्वीकार्य किया था, जिसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति दी थी। पंजाब सरकार ने मांग रखी थी कि अनुसूचित जाति के भीतर भी सब कैटेगरी की अनुमति दी जानी चाहिए। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि इस पर बड़ी बेंच द्वारा फिर से विचार किया जाना चाहिए।

गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया और कहा, पिछड़े समुदायों में हाशिए पर पड़े लोगों के लिए अलग से कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सब-कैटेगरी जायज है। हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोटा के भीतर कोटा गुणवत्ता के विरुद्ध नहीं है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से आने वाले लोग अक्सर सिस्टम के भेदभाव के कारण प्रगति की सीढ़ी पर आगे नहीं बढ़ पाते। सब कैटेगरी संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती। हालांकि राज्य अपनी मर्जी या राजनीतिक लाभ के आधार पर सब कैटेगरी तय नहीं कर सकते और उनके फैसले न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगे।

‘जमीनी हकीकत को देखना भी है जरूरी’

जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ज्यादा पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है। एससी/एसटी वर्ग में सिर्फ कुछ ही लोग आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता और एससी/एसटी में ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से ज्यादा उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। राज्यों को सब कैटेगरी देने से पहले एससी और एसटी श्रेणियों के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक पॉलिसी लानी चाहिए। सही मायने में समानता दिए जाने का यही एकमात्र तरीका है।

जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी उसी तरह लागू होता है, जैसे यह ओबीसी पर लागू होता है। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने देश में दलित वर्गों के लिए आरक्षण का पुरजोर बचाव किया और कहा, सरकार SC-ST आरक्षण के बीच सब कैटेगरी के पक्ष में है।

क्या है कोटा के भीतर कोटा का मतलब-

कोटा के भीतर कोटा का मतलब है आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना। यह मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि आरक्षण का लाभ समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूहों तक पहुंचे, जो आरक्षण प्रणाली के तहत भी उपेक्षित रह जाते हैं। इसका उद्देश्य आरक्षण के बड़े समूहों के भीतर छोटे, कमजोर वर्गों का अधिकार सुनिश्चित करना है ताकि वे भी आरक्षण का लाभ उठा सकें. उदाहरण के लिए अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के भीतर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दिया जा सकता है ताकि उन समूहों को ज्यादा प्रतिनिधित्व और लाभ मिल सके जो सामाजिक या आर्थिक रूप से ज्यादा वंचित हैं।

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