सेप्सिस ले रहा शिशुओं की जान, एंटीबायोटिक दवाएं भी बेअसर
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देश के जिला अस्पतालों में बहु दवा प्रतिरोधी (एमडीआर) जीवाणुओं का संक्रमण शिशुओं में सेप्सिस का बड़ा कारण बन रहा है। एम्स द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जिला अस्तपालों के एसएनसीयू (स्पेशल नियोनेटल न्यू बार्ड केयर यूनिट) में भर्ती 3.2 प्रतिशत शिशु सेप्सिस संक्रमण से पीड़ित होते हैं। 36.6 प्रतिशत शिशुओं की मौत हो जाती है।
सेप्सिस होने का बड़ा कारण (एमडीआर) जीवाणुओं का संक्रमण है, जिसके इलाज में एंटीबायोटिक दवाएं भी बेअसर पाई गईं। सेप्सिस एक जानलेवा स्थिति है।
जिला अस्पतालों में हुआ अध्ययन
यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में शामिल डॉक्टरों ने जिला अस्पतालों में दवा प्रतिरोधी संक्रमण की रोकथाम के उपाय करने और एंटीबायोटिक दवाओं का सही इस्तेमाल को बढ़ावा दिए जाने की सिफारिश की है।
एम्स के पीडियाट्रिक विभाग के नियोनेटोलॉजी के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. जीवा शंकर ने बताया कि बड़े अस्पतालों में शिशुओं में सेप्सिस संक्रमण को लेकर पहले अध्ययन हुए हैं लेकिन जिला अस्पतालों में इस तरह का अध्ययन नहीं हुआ था।
50 प्रतिशत बच्चों में सेप्सिस के लक्षण
जिला अस्पतालों में शिशुओं में सेप्सिस संक्रमण की दर पता लाने के लिए यह अध्ययन किया गया। इसलिए देश के अलग-अलग हिस्सों के पांच जिला अस्पतालों में भर्ती 6,612 नवजात शिशुओं के ब्लड सैंपल लेकर बड़े अस्पतालों में ब्लड कल्चर जांच कराई गई। इनमें तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश व असम के अस्पताल शामिल थे।
शिशुओं का औसत वजन ढाई किलोग्राम था। 50 प्रतिशत बच्चों में सेप्सिस के लक्षण पाए गए। लेकिन कल्चर जांच में 3.2 प्रतिशत शिशुओं में यह संक्रमण पाया गया। इससे पीडि़त शिशुओं में मृत्यु दर 36.6 प्रतिशत रही। सेप्सिस के संक्रमण का कारण मुख्य रूप से तीन जीवाणु पाए गए।
22.9 प्रतिशत शिशु क्लेबसिएला निमोनिया, 14.8 शिशु ई.कोलाई और 11.7 प्रतिशत शिशुओं को एंटोरोबैक्टर का संक्रमण था। 75 से 88 प्रतिशत एमडीआर जीवाणु से संक्रमित थे। कल्चर जांच में तीन तरह की एंटीबायोटिक दवाओं सेफालोस्पोरिन, कार्बापेनम और अमिनोग्लाइकोसाइड्स के प्रति प्रतिरोधकता पाई गई।
जिला अस्पतालों में ब्लड कल्चर जांच की सुविधा नहीं
ये दवाएं इलाज में बेअसर पाई गईं। अध्ययन में कहा गया है कि सेप्सिस के संक्रमण से हर वर्ष दुनिया भर में पांच लाख 50 हजार शिशुओं की मौत हो जाती है। इसमें से एक चौथाई मौतें भारत में होती हैं। देश भर के जिला अस्पतालों में मौजूद 979 एसएनसीयू में हर वर्ष दस लाख से अधिक शिशु भर्ती होते हैं।
एसएनसीयू में भर्ती होने वाले करीब 40 प्रतिशत शिशुओं को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती है। एसएनसीयू की सुविधा से संपन्न ज्यादातर जिला अस्पतालों में ब्लड कल्चर जांच की सुविधा नहीं होती। इस वजह से बिना ब्लड कल्चर जांच के ही सेप्सिस के संदेह व लक्षण के आधार पर एंटीबायोटिक दवाएं शुरू कर दी जाती है। इसलिए जिला अस्पतालों में एंटीबायोटिक के सही इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।