सोमवार को करें शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ
सोमवार का दिन भगवान शंकर की पूजा के लिए समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि जो साधक शिव जी की पूजा सच्चे भाव के साथ करते हैं और व्रत रखते हैं उन्हें शिव जी का आशीर्वाद सदैव के लिए प्राप्त होता है। साथ ही सोमवार के दिन शिव मंदिर में जाकर भोलेनाथ को जल चढ़ाने के बाद शिवाष्टक स्तोत्र (Shivashtakam Path) का पाठ बेहद शुभ माना जाता है।
सनातन धर्म में भगवान शिव की पूजा बेहद मंगलकारी मानी जाती है। इस दिन व्रत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन का व्रत करते हैं और पूजा-पाठ करते हैं, भोलेनाथ उनकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। ऐसे में सुबह उठकर स्नान करें। फिर शंकर भगवान का ध्यान करें। इसके बाद शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाएं और शिव जी को फल, फूल इत्यादि चीजें अर्पित करें। इसके साथ ही शिवाष्टक स्तोत्र (Shivashtakam) का पाठ करें और आरती से पूजा को पूर्ण करें। ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होंगे और मनचाहा वर प्रदान करेंगे।
।शिवाष्टक स्तोत्र।।
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुरातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकार, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधर दया करो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
जय मन भावन, जय अति पावन, शोक नशावन,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी,
सरल हृदय, अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी,
निमिष में देते हैं, नवनिधि मन मानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी,
स्वयम् अकिंचन, जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।