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हरियाणा की राजनीति से सियासी कद बढ़ाना चाहते हैं यूपी के क्षेत्रीय दल…

हरियाणा की राजनीति से यूपी के क्षेत्रीय दल सियासी कद बढ़ाना चाहते हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव में सपा, बसपा, रालोद और आजाद समाज पार्टी ताल ठोकने को तैयार हैं। इनेलो के साथ गठबंधन में बसपा 34 और जजपा के साथ मिलकर आसपा 20 सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में दखल रखने वाली क्षेत्रीय पार्टियां प्रदेश से बाहर निकल कर चुनाव मैदान में ताल ठोकना चाह रही हैं। इनकी मंशा अब अपना सियासी कद बढ़ाने की है। इसी मंशा के साथ बहुजन समाज पार्टी ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और आजाद समाज पार्टी (आसपा) ने जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ गठबंधन किया है।

बसपा 34 और आसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी (सपा) ने कांग्रेस से पांच सीटें मांगी हैं। वहीं, एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) को भाजपा एक से दो सीटें दे सकती है। बीते लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टियां पक्ष और विपक्ष दो गुटों में बंट गई हैं।

सपा और आसपा इंडिया गठबंधन में शामिल होकर विपक्ष में बैठ रही हैं। वहीं, रालोद एनडीए गठबंधन में शामिल है। इसके मुखिया जयंत चौधरी मोदी सरकार की कैबिनेट में भी शामिल हैं। सिर्फ बसपा इन दोनों में से किसी गुट में शामिल नहीं है।

लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश का पड़ोसी राज्य है और यहां की परिस्थितियां, मुद्दे जातीय व सियासी समीकरण उत्तर प्रदेश से काफी मिलते-जुलते हैं। इसलिए उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दलों के हरियाणा में सियासत की राह आसान दिख रही है।

हरियाणा की राजनीति में अनुभव की बात करें तो बसपा के अलावा किसी दल ने न तो प्रदेश में कोई चुनाव लड़ा है और न उनका संगठन है। 2019 का विधानसभा चुनाव छोड़ दें तो बसपा साल 2000 से लगातार हरियाणा में एक विधानसभा सीट पर जीत हासिल करती रही है और हर चुनाव में पांच से साढ़े सात प्रतिशत से अधिक वोट भी हासिल किए हैं।

2019 के चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई और पार्टी का मत प्रतिशत 2014 की तुलना में दो प्रतिशत से अधिक गिर गया। अब बसपा की कमान युवा नेता आकाश आनंद के हाथ में है और पार्टी एक बार फिर 21 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाताओं के सहारे हरियाणा में पैर जमाना चाह रही है।

इनेलो और बसपा गठबंधन के बाद जजपा ने आसपा से गठजोड़ किया है। इस समझौते से आसपा से अधिक जजपा को मदद मिलने की आस है। किसानों की नाराजगी और विधायकों के साथ छोड़ने से जजपा अनुसूचित जाति के मतदाताओं के भरोसे अपनी स्थिति सुधारना चाहती है।

समाजवादी पार्टी हरियाणा में कांग्रेस के सहारे अपनी जमीन तलाशना चाह रही है, लेकिन अभी तक दोनों दलों में बात नहीं बनी है। हरियाणा कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते हैं।

उनको विश्वास है कि पार्टी बिना किसी गठबंधन के प्रदेश की सत्ता हासिल कर लेगी। वहीं, सपा 3.5 प्रतिशत मुस्लिम, 30 प्रतिशत ओबीसी और उत्तर प्रदेश के करीब 12 लाख प्रवासी मतदाताओं के प्रभाव वाली पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारना चाह रही है।

लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले एनडीए में शामिल हुआ रालोद अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जुड़ी और जाट मतदाताओं के प्रभाव वाली सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है। रालोद के मुखिया जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह की ससुराल सोनीपत गांव गढ़ी कुंडल में है।

इसके अलावा चौधरी चरण सिंह का प्रभाव आज भी हरियाणा के जाट मतदाताओं पर है। दूसरी ओर 22 जाट मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा भी रालोद को एक से दो सीटें दे सकती है। दिल्ली में हुई भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में इस पर चर्चा हुई है।

हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस के विकल्प के रूप लोक दल ही था। कांग्रेस आज भी अपनी जगह कायम है। उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल जिन सामाजिक, जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को देखते हुए हरियाणा की राजनीति में उतरना चाह रहे हैं उसमें उनकी राह आसान नहीं होगी।

मायावती की सक्रियता कम होने के बाद बसपा का आधार उत्तर प्रदेश में ही कमजोर हुआ है। उसकी जगह आजाद समाज पार्टी अनुसूचित जाति के मतदाताओं के सहारे कुछ सीटों पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है, लेकिन रालोद की राह मुश्किल है। क्योंकि हरियाणा में कांग्रेस, इनेलो और जजपा तीनों दलों में बड़े जाट नेता हैं। -प्रो राजेंद्र शर्मा, अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक

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