बिहार में जन्म पंजीकरण में हुआ सुधार तो वहीं मृत्यु की जानकारी देने में सुस्ती कायम
यह आम लोगों की जागरूकता है कि सौ में 95 से अधिक नवजात शिशुओं का पंजीकरण होने लगा है। बाकी शिशुओं के पंजीकरण के लिए भी कोशिश की जा रही है। यह उपलब्धि बीते आठ वर्षों की है। इन वर्षों में एक साल के अपवाद को छोड़ हर साल शिशु जन्म पंजीकरण की संख्या बढ़ी। रफ्तार यही रही तो आने वाले कुछ वर्षों में शत प्रतिशत पंजीयन का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। हां, मृत्यु के पंजीकरण की रफ्तार अब भी धीमी है। अगर, पेंशन, बीमा, मुआवजा या अन्य फायदे की गुंजाइश न रहे तो लोग किसी स्वजन की मौत का पंजीयन नहीं कराते हैं।
योजना एवं विकास विभाग की वार्षिक रिपोर्ट (2020-21) के मुताबिक वर्ष 2013 में सिर्फ 53.2 प्रतिशत नवजात शिशुओं का पंजीकरण कराया गया था। अगले साल 2014 में यह आंकड़ा 59 प्रतिशत पर पहुंचा। उसके बाद 2016 को छोड़ कर हरेक साल इसमें वृद्धि हुई। 2020 के औपबंधिक आंकड़े में इसे 95.3 प्रतिशत बताया गया है। दूसरी तरफ मृत्यु पंजीकरण की संख्या भी बढ़ रही है। लेकिन, इसकी रफ्तार जन्म पंजीकरण की तुलना में थोड़ी धीमी है। 2020 में मृत्यु पंजीकरण का आंकड़ा 60.1 प्रतिशत रहा। यह 2019 के 51.6 प्रतिशत की तुलना में अधिक है।
क्यों बढ़ी दिलचस्पी
असल में जन्म प्रमाण पत्र बनाने में आम लोगों की दिलचस्पी का कारण भी है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी सरकारी अस्पताल या आशा कर्मियों की देख रेख में प्रसव का चलन बढ़ा है। स्वास्थ्यकर्मी अभिभावकों को पंजीयन के लिए प्रेरित करते हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित पंजीकरण करने वाली संस्थाओं तक पहुंचने के लिए लोगों को पहुंचाते हैं। दूसरा कारण यह है कि पंजीकरण को लोक सेवाओं के अधिकार अधिनियम में शामिल कर लिया गया है। इससे लाभ यह मिल रहा है कि प्रसव के 30 दिन बाद भी शिशु का पंजीकरण आसानी से हो रहा है। स्कूली बच्चों का आधार कार्ड बनाने की अनिवार्यता ने भी पंजीकरण को लोकप्रिय बनाया है।
वर्ष जन्म पंजीयन का प्रतिशत
- 2013 53.2
- 2014 59
- 2015 59.3
- 2016 55.2
- 2017 66.7
- 2018 72.3
- 2019 89.3
- 2020 95.3