जुलाई में कब है रोहिणी व्रत?
रोहिणी व्रत को सच्ची श्रद्धा के साथ महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और व्रत के नियमों का पालन करती हैं। इस अवसर पर भगवान वासुपूज्य स्वामी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है जिससे जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइए जानते हैं जुलाई में पड़ने वाले रोहिणी व्रत की डेट और अन्य जानकारी।
जैन धर्म में रोहिणी व्रत का संबंध नक्षत्रों से माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, तो उसी दिन रोहिणी व्रत होता है। जैन समुदाय में इस व्रत बेहद खास माना जाता है। रोहिणी व्रत को जैन समुदाय के लोग बेहद उत्साह के साथ करते हैं।
रोहिणी व्रत 2024 जुलाई तिथि (Rohini Vrat 2024 July Date)
पंचांग के अनुसार, रोहिणी व्रत 03 जुलाई, 2024 दिन बुधवार को है। रोहिणी व्रत को लगातार 3, 5 या फिर 7 साल तक किया जाता है। इसके बाद रोहिणी व्रत का उद्यापन किया जाता है।
ऐसे करें वासुपूज्य भगवान की पूजा (Rohini Vrat Puja Vidhi)
रोहिणी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठें और दिन की शुरुआत देवी-देवताओं के ध्यान से करें। इसके बाद स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके वाद विधिपूर्वक सूर्य देव को जल अर्पित करें। अब मंदिर में चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा को विराजमान करें। साथ ही उन्हें फूल माला चढ़ाएं। दीपक जलाकर आरती करें। इसके बाद सुख, सौभाग्य, यश, कीर्ति और वैभव की प्रार्थना करें। रोहिणी व्रत के दौरान रात में भोजन करने की मनाही है। ऐसे में सूर्यास्त से पहले ही फलाहार करें। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत में श्रद्धा अनुसार अन्न, धन और वस्त्र का दान करना चाहिए।
वासुपूज्य भगवान की आरती (Vasupujya Bhagwan Ki Aarti)
ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी।
पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, तुम अन्तर्यामी ।।
चंपापुर नगरी भी स्वामी, धन्य हुई तुमसे।
जयरामा वसुपूज्य तुम्हारे स्वामी, मात पिता हरषे ।।
बालब्रह्मचारी बन स्वामी, महाव्रत को धारा।
प्रथम बालयति जग ने स्वामी, तुमको स्वीकारा ।।
गर्भ जन्म तप एवं स्वामी, केवल ज्ञान लिया।
चम्पापुर में तुमने स्वामी, पद निर्वाण लिया ।।
वासवगण से पूजित स्वामी, वासुपूज्य जिनवर।
बारहवें तीर्थंकर स्वामी, है तुम नाम अमर ।।
जो कोई तुमको सुमिरे प्रभु जी, सुख सम्पति पावे।
पूजन वंदन करके स्वामी, वंदित हो जावे ।।
ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी।
पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, तुम अन्तर्यामी ।।