बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन के बीच 150 भारतीय छात्र लौटे त्रिपुरा
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर देश में विरोध प्रदर्शन जारी है। इस बीच बांग्लादेश से लगभग 150 भारतीय छात्र एकीकृत चेक पोस्ट (ICP) के माध्यम से यहां पहुंचे हैं। छात्र शनिवार को अगरतला पहुंचे। इससे पहले करीब एक हजार भारतीय छात्र स्वदेश लौट चुके हैं। इनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और मेघालय के रहने वाले हैं।
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सेक्टर कमांडर, डीआईजी राजीव अग्निहोत्री ने छात्रों को लेकर जानकारी देते हुए कहा कि लगभग 150 छात्रों ने विभिन्न आईसीपी के माध्यम से वापसी की है। उन्होंने आगे कहा, ‘बांग्लादेश में मौजूदा स्थिति के कारण, वहां पढ़ने वाले भारतीय और विदेशी छात्र अलग-अलग आईसीपी (एकीकृत चेक पोस्ट) के माध्यम से वापस आ रहे हैं।
ICP के जरिए भारत आए छात्र
अब तक लगभग 150 छात्र विभिन्न आईसीपी के माध्यम से वापस आ चुके हैं। बीएसएफ इसके लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहा है और व्यवस्था कर रहा है।
पश्चिमी त्रिपुरा के जिला मजिस्ट्रेट विशाल कुमार ने इसको लेकर जानकारी दी है, उन्होंने कहा, ‘पिछले 4-5 दिनों से बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी प्रदर्शन चल रहे हैं और खासकर भारत जैसे पड़ोसी देशों के छात्र और अन्य नागरिक इनसे काफी प्रभावित हुए हैं।’
पूरा सिस्टम किया सीज
मजिस्ट्रेट ने आगे कहा, उनका लगभग पूरा सिस्टम सीज हो चुका है, इसके कारण हमारे कई नागरिक हमारे देश में आ रहे हैं, जिनमें त्रिपुरा के कई लोग शामिल हैं, खासकर कल और आज, कई छात्र और हमारे कई भारतीय जो अलग-अलग व्यवसायों के कारण वहां गए थे यहां आ रहे हैं। विदेश मंत्रालय (एमईए) बांग्लादेश में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जयसवाल की तरफ से पोस्ट किए गए एक्स पर बांग्लादेश में भारतीय नागरिकों की वापसी पर अपडेट साझा करते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लिखा, ‘बांग्लादेश में भारतीय नागरिकों के परिवारों और शुभचिंतकों की चिंता की सराहना करते हैं।’
क्यों हो रहा विरोध प्रदर्शन?
सुरक्षित यात्रा की सुविधा के लिए, विदेश मंत्रालय नागरिक उड्डयन, आव्रजन, भूमि बंदरगाहों और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) अधिकारियों के साथ भी समन्वय कर रहा है। बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन सिविल सेवा नौकरियों के लिए देश की कोटा प्रणाली में सुधार की मांग से प्रेरित है, जो विशिष्ट समूहों के लिए पद आरक्षित करता है, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले लोगों के वंशज भी शामिल हैं।