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हिसार : ऐरावत-3 करेगा सेना के लिए एयर एंबुलेंस का काम

रक्षा मंत्राालय के तहत कार्य करने वाली आयुध उपस्कर निर्माणी हजरतपुर ने हाल में 40 किलो की क्षमता वाला ड्रोन ऐरावत-2 को विकसित किया है। सेना ने ट्रायल में परखने के बाद दुर्गम इलाकों में इसके प्रयोग की हरी झंडी दे दी है। इससे पहले आयुध उपस्कर फैक्टरी द्वारा 20 किलो की क्षमता वाला ड्रोन विकसित किया जा चुका है। 

दुर्गम पर्वतीय इलाके में ड्रोन अब घायल सैन्यकर्मियों को तत्काल उपचार दिलाने में एयर एंबुलेंस की तरह काम करेगा। आयुध उपस्कर निर्माणी ने दो क्विंटल तक वजन उठाने में सक्षम एंबुलेंस ड्रोन ऐरावत-3 को विकसित करने की तैयारी शुरू कर दी है, ताकि भविष्य में चीन-पाकिस्तान सीमा पर अत्यधिक ऊंचाई पर फंसे घायल और बीमार सैनिकों को तत्काल उपचार केंद्रों तक पहुंचाया जा सके। यह ड्रोन सीमाओं की निगरानी में भी कारगर साबित हो सकता है। इसमें राडार सिस्टम भी जोड़ा जा रहा है ताकि बर्फीले तूफान में फंसे हुए जवानों के बारे में आकलन किया जा सके।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस प्रयास का उद्देश्य आपातकालीन स्थिति में सैनिकों को चिकित्सा सुविधा मुहैया करना है। यह ड्रोन विशेष रूप से अत्यधिक ऊंचाई वाले और दुर्गम क्षेत्रों के लिए बनाया जाएगा, ताकि समय पर चिकित्सा सहायता पहुंचाई जा सके। खास बात यह कि इसे स्वदेशी पुर्जों की मदद से विकसित किया जा रहा है। इसके अलावा रक्षा मंत्राालय के तहत कार्य करने वाली आयुध उपस्कर निर्माणी हजरतपुर ने हाल में 40 किलो की क्षमता वाला ड्रोन ऐरावत-2 को विकसित किया है। सेना ने ट्रायल में परखने के बाद दुर्गम इलाकों में इसके प्रयोग की हरी झंडी दे दी है। इससे पहले आयुध उपस्कर फैक्टरी द्वारा 20 किलो की क्षमता वाला ड्रोन विकसित किया जा चुका है। खास बात यह कि इसमें भी स्वदेशी कल-पुर्जे का इस्तेमाल किया गया है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कुपवाड़ा में एक हवाई क्षेत्र में बीते माह ड्रोन ऐरावत -2 को परखा गया। ट्रायल में सेना ने यह पाया कि यह ड्रोन आपदा के दौरान जान-माल को बचाने में कारगर साबित हो सकता है। उसके बाद जम्मू-कश्मीर की ऊधमपुर सैन्य छावनी के लिए 13 ड्रोन की आपूर्ति करने के ऑर्डर उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के हजरतपुर स्थित आयुध उपस्कर निर्माणी को मिले हैं। अभी 13 ड्रोन को असेंबल करने का काम किया जा रहा है। अगले महीने तक आयुध उपस्कर निर्माणी से सेना को आपूर्ति हो जाने की संभावना है। बर्फीले इलाके लिए यह ड्रोन ज्यादा उपयोगी माना जा रहा है। प्रतिकूल मौसम में भी यह ड्रोन एक घंटे में 18 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। मैदानी इलाकों की बात करें तो यह ड्रोन 10 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है। 

ऐरावत-1 को शुरुआत में अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में इसने जम्मू और कश्मीर की बर्फीली चोटियों से लेकर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की ऊबड़-खाबड़ और ऊंची चोटियों पर विपरीत परिस्थितियों में बड़ी आसानी से अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। बता दें कि आयुध उपस्कर निर्माणी ने अत्याधुनिक मानव रहित हवाई सिस्टम के अलावा देश की रक्षा के लिए थल सेना और वायु सेना को कई तरह के उपकरण दिए हैं, जिनमें पायलट पैराशूट, स्पेस री एंट्री पैराशूट, मल्टी स्पेक्ट्रल कैमोफ्लाज नेट, अरेस्टर बैरियर सिस्टम आदि शामिल हैं। 

अधिकारी के अनुसार
ड्रोन एयरावत-1 के बाद ऐरावत-2 व 3 का विकास एवं उत्पादन हमारे सतत प्रयासों का नतीजा है। ड्रोन के विकास में की गई हालिया प्रगति पर हमें अत्यधिक गर्व है। टीम का समर्पण और रक्षा मंत्रालय का सहयोग हमारी सफलता में महत्वपूर्ण रहा है। हम सीमाओं को मजबूत करने, रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने और भारत में रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता में योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम मानवरहित हवाई परिवहन में अगुवाई करते हुए उत्साहित हैं। – अमित सिंह, महानिदेशक, आयुध उपस्कर निर्माणी, हजरतपुर।

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