अध्यात्म

दिवाली पर मां लक्ष्मी के साथ क्यों होती है गणेश जी की पूजा?

आपने देखा होगा कि सभी देवताओं की पूजा उनकी अर्धांगिनी के साथ की जाती है, जैसे शिव जी की पार्वती के साथ, राम जी की सीता माता के साथ। लेकिन दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन किया जाता है। जबकि लक्ष्मी जी विष्णु जी की पत्नी है और गणेश जी की पत्नियां रिद्धि-सिद्धि हैं।

मिलती है यह कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार लक्ष्मी जी को इस बात का अहंकार हो गया कि लोग धन-धान्य की प्राप्ति के लिए उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। तब भगवान विष्णु ने उनके मन के भाव को भांप लिया और उनके अहंकार को तोड़ने के लिए कह दिया कि धन-धान्य की देवी होने के बाद भी आप अपूर्ण हैं। जब माता लक्ष्मी ने इसका कारण पूछा, तो विष्णु जी ने कहा कि एक स्त्री जब तक मातृत्व का सुख प्राप्त न कर ले, वह अधूरी मानी जाती है। विष्णु जी के यह वचन सुनकर लक्ष्मी जी को बहुत दुख हुआ।

तब एक बार उन्होंने अपना यह कष्ट माता पार्वती के समक्ष प्रकट किया और उनसे गणेश जी को दत्तक पुत्र के रूप में देने की बात कही। लक्ष्मी जी की यह बात सुनकर पार्वती जी थोड़ी चिंतित हो गईं। तब लक्ष्मी जी ने गणेश जी को यह वरदान दिया कि जहां भी लक्ष्मी जी की पूजा होगी, वहां साथ में गणेश जी की भी पूजा की जाएगी। माना जाता है कि तभी से दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा की परम्परा शुरू हो गई।

यह भी है कारण
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को धन की देवी के रूप में पूजा जाता है। दिवाली पर हम लक्ष्मी जी पूजा धन आगमन की कामना के साथ करते हैं। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि धन के आने पर व्यक्ति की बुद्धि खराब हो सकती है, अर्थात व्यक्ति को धन का घमंड होने लगता है। ऐसे में धन की देवी के साथ-साथ बुद्धि के देवता गणेश जी की पूजा का विधान है, ताकि धन के आगमन पर भी व्यक्ति की बुद्धि ठीक रहे और उसके जीवन में सौभाग्य, सुख, संपदा और यश कायम रहें।

या फिर यह भी कहा जा सकता है कि यदि शुद्ध बुद्धि के बिना ही व्यक्ति को धन की प्राप्ति हो जाती है, तो वह नाश का कारण बन सकती है। ऐसे में धन और वैभव के साथ-साथ शुद्ध बुद्धि होना भी आवश्यक है। यही कारण है कि दिवाली पर लक्ष्मी जी के साथ-साथ गणेश जी की भी पूजा की जाती है।

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