राज्यों के गोवंशों की मौत का कारण बन चुकी लंपी त्वचा रोग बिमारी का आखिरकार तीन साल रिसर्च करने के बाद मुक्तेश्वर आईवीआरआई और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार के वैज्ञानिकों की टीम ने ” लंपी प्रोवैक ” टीका तैयार कर लिया है। यह एक स्वदेशी सजातीय टीका है। लंपी का टीका तैयार होने से अब गोवंशों में होने वाली लंपी की बिमारी से निजात मिल सकेगी। साथ ही पशुपालकों को आर्थिक रूप से भी नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा।
टीका तैयार करने में लगे तीन साल
लंपी त्वचा रोग का टीका बनाने में मुक्तेश्वर आईवीआरआई और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान हिसार के वैज्ञानिकों की टीम ने तीन साल तक इस बिमारी की रोकथाम के लिए रिसर्च करने के बाद लंपी प्रोवैक टीका तैयार किया।
इन वैज्ञानिकों की टीम ने तैयार किया टीका
लंपी प्रोवैक का टीका बनाने में आईवीआरआई मुक्तेश्वर के पॉक्स प्रयोगशाला प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार, डॉ. करम पाल सिंह, डॉ. सुक्देब नंदी और निदेशक डॉ. त्रिवेणी दत्त और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार के डॉ. नवीन कुमार, डॉ. संजय बरूआ, डॉ. यशपाल और तत्कालीन महानिदेशक डॉ. बीएन त्रिपाठी शामिल रहे।
चार दवा कंपनियों को दी गई दवा की तकनीक
वैज्ञानिकों की टीम की ओर से तैयार लंपी प्रोवैक दवा की तकनीक को चार दवा कंपनियों को दी गई है। इसमें बायोवेट, इंडियन इम्यूनोलोजिकल्स, आईवीबीपी पुणे और हेस्टर शामिल हैं। कंपनियों की ओर से जल्द ही बाजार में उपलब्ध कराई जाएगी। इस दवा का प्रयोग चार माह से अधिक आयु के पशुओं पर किया जा सकता है। साथ ही वर्तमान समय में इस रोग के आपातकालीन रोकथाम के लिए आईवीआरआई मुक्तेश्वर की ओर से निर्मित गोट पॉक्स (बकरी चेचक) दवा का प्रयोग सभी प्रभावित राज्यों में किया जा रहा है।
दो लाख से अधिक गंवा चुके हैं जान
लंपी त्वचा रोग की जानलेवा बीमारी से भारत वर्ष में अभी तक 33 लाख गोवंश प्रभावित हो चुके हैं। साथ ही देश भर में 2 लाख से अधिक गायों की मौत इस रोग से हो चुकी है। इसके चलते पशुपालकों को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा है।
गाय को प्रभावित करती है लंपी रोग
लंपी त्वचा रोग बेहद संक्रमित रोग है। लंपी का रोग सबसे अधिक गाय को प्रभावित करने वाला रोग होता है। हालंकि भैंस, ऊंट, हिरण, याक और मिथुन में भी यह रोग देखा जाता है।
मक्खी, मच्छरों और किल्नियों से फैलता है लंपी रोग
लंपी रोग बेहद संक्रमित रोग होता है। यह संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशु में काटने वाले मक्खी, मच्छर और किल्नियों से फैलने वाला रोग है। इस रोग में 50 से अधिक पशु प्रभावित होते हैं और इसकी मृत्यु दर सामान्यत 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक होती है।
लंपी के लक्षणों की पहचान
1- पशुओं को तेज बुखार
2- भूख न लगना
3- नाक और आंख से पानी आना
4- पशुओं के शरीर पर दाने और फोड़ों का होना
5- पैरों में सूजन
6- दूध में कमी
7- गर्भपात की समस्या, फेफड़ों में निमोनिया और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का खत्म हो जाना इस रोग का लक्षण है।
बचाव के लिए ये है उपाय
1- स्वस्थ पशुओं को मच्छर और मक्खियों से बचाव
2- समय से टीकाकरण
3- गौशाला में बंद जाली या मच्छरदानी का प्रयोग
4- नीम के पत्तों का धुंआ
5- पशुओं के बाड़े में फिनायल या चूने का छिड़काव
6- पशुओं के बीमार होने पर पशु चिकित्सकों की सलाह लेना
गोवंशों के लिए लंपी त्वचा रोग बेहद संक्रमित और जानलेवा रोग है। इस रोग की रोकथाम के लिए आईवीआरआई मुक्तेश्वर और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार के वैज्ञानिकों ने तीन साल के रिसर्च के बाद लंपी प्रोवैक टीका तैयार किया है। यह टीका लंपी रोग को खत्म करने में बेहद सहायक होगा। -डॉ. अमित कुमार, प्रभारी पॉक्स प्रयोगशाला मुक्तेश्वर
आईवीआरआई मुक्तेश्वर के वैज्ञानिकों की ओर से लंपी रोग के निदान के लिए दवा तैयार की गई है। इस दवा के माध्यम से गोवंशों में लंपी रोग से निदान मिलेगा। साथ ही आईवीआरआई के वैज्ञानिक समय-समय पर गोष्ठी और जनजागरुकता के माध्यम से पशुओं में होने वाले रोगों की पहचान के साथ उनके निदान को लेकर जानकारी देते है। -डॉ. यशपाल सिंह मलिक, संयुक्त निदेशक, आईवीआरआई मुक्तेश्वर