अध्यात्म

कौन हैं छठी मैया, जानें किस प्रकार जुड़ा है भगवान शिव से नाता

इस साल छठ पर्व की शुरुआत मंगलवार, 05 अक्टूबर से हो रही है। छठ पूजा के दौरान 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखे जाने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि छठी माता के पूजन से साधक को आरोग्यता, वैभव और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है। इस दौरान उगते हुए व डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से छठ माता की पूजा का विधान है। तो ऐसे में चलिए जानते हैं कि छठ माता की उत्पत्ति कैसे हुई?

कौन हैं छठी मैया
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी का निर्माण शुरू किया तो उन्होंने प्रकृति का भी निर्माण किया। इसके बाद देवी प्रकृति माता ने खुद को छह रूपों में विभाजित किया। जिसके छठे अंश को छठी मैया के रूप में जाना गया। इसी प्रकार छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है। बच्चे के जन्म के छठे दिन भी देवी के इसी स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बालक को अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव से संबंध
धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवसेना अर्थात छठी मैया का विवाह भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय से हुआ था। इस नाते से वह भगवान शिव की पुत्रवधू हुईं। वहीं कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया को सूर्य देव की बहन भी बताया गया है।

मिलती है ये कथा
छठी मैया की उत्पत्ति को लेकर एक पौराणिक कथा मिलती है जिसके अनुसार, राजा प्रियंवद और पत्नी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। दोनों ही इस बात से बहुत दुखी रहते थे। जब वह संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर ऋषि कश्यप के पास पहुंचे। तब ऋषि ने उन्हें संतान सुख पाने के लिए यज्ञ करने को कहा। राजा ने ठीक ऐसा ही किया, जिससे उन्हें जल्द ही पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह बालक मरा हुआ था।

राजा प्रियंवद ने पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का निर्णय किया, लेकिन उसी वक्त कन्या देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति में छठे अंश से उत्पन्न हुईं हूं, इसलिए मैं षष्ठी कहलाऊंगी। हे राजा, तुम मेरा पूजा करो और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करो। राजा ने ऐसा ही किया और जल्द ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति भी हुई।

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