राजस्थान के उपचुनावों में की चर्चा यूपी की तरह देश में नहीं हुई। लेकिन, स्थानीय राजनीति के लिए ये चुनावी नतीजे कद, पद और प्रतिष्ठा की लड़ाई हैं। नतीजे तय करेंगे कि सीएम भजनलाल का सियासी कद बढ़ेगा या घटेगा। प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष बदलेगा या नहीं और क्षेत्रीय पार्टियों के बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा।
राजस्थान में सात सीटों पर विधानसभा चुनावों के नतीजे 23 नवंबर को सामने आ जाएंगे। इन परिणामों का विधानसभा में बहुमत बल पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर भी सियासत की दिलचस्पी इन चुनावों में है। सामान्य रूस से समझें तो यह चुनाव राजस्थान में पद, कद और प्रतिष्ठा की लड़ाई है। राजस्थान में भजनलाल सरकार के कार्यकाल का पहला साल दिसंबर में पूरा हो रहा है। इससे पहले ही ये नतीजे आ रहे हैं। इसलिए परिणाम भजनलाल शर्मा के सियासी कद से भी जोड़े जाएंगे। नतीजे पक्ष में रहे तो भजनलाल शर्मा बड़े फैसले ले पाएंगे।
डोटासरा का पद बचेगा या बदलेगा
ये उपचुनाव राजस्थान में कांग्रेस के भविष्य से जोड़कर भी देखा जा रहा है। राजस्थान में कांग्रेस की कमान लक्ष्मणगढ़ के विधायक और पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के पास है। कांग्रेस में इस बात की चर्चा है कि विधानसभा चुनावों के नतीजे तय करेंगे कि राजस्थान कांग्रेस के संगठन में जल्द बदलाव होगा या नहीं।
हनुमान की गिनती बढ़ेगी या नहीं?
राजस्थान में हनुमान बेनीवाल एक वक्त में तीसरे दल के विकल्प के तौर पर काफी मजबूत नजर आ रहे थे। विधानसभा में उनके विधायकों की संख्या 3 तक पहुंच गई थी। लेकिन अब लड़ाई अस्तित्व की है। खींवसर सीट पर हनुमान की पत्नी कनिका बेनीवाल चुनाव जीतती हैं, तभी विधानसभा में आरएलपी का खाता खुला रहेगा। हालांकि, हनुमान बेनीवाल यह कह चुके हैं कि उनकी सियासत पर ये चुनावी नतीजे कोई फर्क नहीं डाल पाएंगे।
बीएपी जीती तो तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनेगी
पिछले साल राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बनी भारतीय आदिवासी पार्टी ने चौरासी, आसपुर और धरियावद जीत हासिल कर दक्षिणी राजस्थान की मजबूत तारबंदी कर दी। इसके बाद पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में राजकुमार रोत को सांसद बना दिल्ली भेज दिया। बीजेपी के प्रत्याशी महेंद्रजीत मालवीय बागीदौरा सीट भी उपचुनाव में कब्जे में ली। अब 23 नवंबर को चौरासी, सलूंबर का फैसला होगा। ऐसे में 16वीं विधानसभा में बीएपी 4 या 5 विधायकों वाली तीसरी बड़ी पार्टी होगी।