महाराष्ट्रराज्य

पुणे में नहीं थम रहा जीबीएस का प्रकोप, एक और 63 वर्षीय व्यक्ति की मौत

पुणे में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का बढ़ता स्वरूप वहां के लोगों के बड़े संकट के तौर पर सामने आ रही है। जहां इस बीमारी के चलते बुधवार को भी एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसके साथ ही जिले में जीबीएस से मरने वालों की संख्या बढ़कर छह हो गई है।

महाराष्ट्र के पुणे जिले में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के बढ़ता प्रकोप एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रहा है। जहां जीबीएस से एक 63 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई। इसके साथ ही पुणे में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या छह हो गई है।

स्वास्थ्य अधिकारी ने दी जानकारी
मामले में स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि इस व्यक्ति को बुखार, दस्त और निचले अंगों में कमजोरी की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसे जीबीएस से पीड़ित पाया गया। बुधवार को उसकी हालत बिगड़ी और तीव्र इस्केमिक स्ट्रोक के कारण उसकी मौत हो गई। बता दें कि राज्य में अब तक कुल 173 संदिग्ध जीबीएस मामले सामने आए हैं, जिनमें से 140 मामलों में जीबीएस का इलाज किया गया है। इसमें 72 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी है, जबकि 55 मरीज आईसीयू में और 21 वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं।

एक्शन में पुणे नगर निगम
जिले में जीबीएस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए पुणे नगर निगम (पीएमसी) सक्रिय है। इसके तहत पीएमसी ने नांदेड़ और उसके आसपास के इलाकों में 11 निजी रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) प्लांट को सील कर दिया है, क्योंकि जांच में पाया गया कि इन प्लांट से निकलने वाला पानी पीने के लिए सुरक्षित नहीं है। इसके साथ ही, पीएमसी के जल आपूर्ति विभाग ने अब तक कुल 30 आरओ प्लांट को सील कर दिया है।

जल विभाग के प्रमुख ने दी जानकारी
साथ ही मामले में पीएमसी के जल विभाग के प्रमुख नंदकिशोर जगताप ने बताया कि जल्द ही निजी आरओ प्लांट, पानी के टैंकर संचालकों और बोरवेल के मालिकों को एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की जाएगी। इसके तहत, उन्हें स्वच्छ पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ब्लीचिंग सॉल्यूशन का उपयोग करना होगा।

एक नजर जीबीएस पर
बता दें कि गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) एक दुर्लभ बीमारी है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिकाओं पर हमला करती है, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी, पैरों और हाथों में संवेदनशीलता का नुकसान और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। गंभीर मामलों में यह पूरी तरह से पक्षाघात का कारण बन सकता है। यह बीमारी वयस्कों और पुरुषों में अधिक आम है, लेकिन सभी उम्र के लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं।

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