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दिल्ली: अड़चनों के कारण लटका 11 अस्पतालों का निर्माण कार्य

निर्माण कार्य के लिए 10,250 करोड़ रुपये से अधिक का फंड और निर्माण के बाद संचालन के लिए सालाना 8,000 करोड़ रुपये की दरकार है। अब भाजपा सरकार इन परियोजनाओं को जल्द पूरा करने के लिए अड़चनें दूर करने का प्रयास कर रही है। चरणबद्ध तरीके से काम कराया जाएगा।

आप सरकार की ओर से कोरोना महामारी के दौरान 11 नए अस्पतालों का निर्माण कार्य शुरू कराया गया था, लेकिन कई अड़चनों के कारण वर्तमान में काफी धीमी गति से काम चल रहा है। इसमें सबसे प्रमुख कारण फंड की कमी है। विभिन्न विभागों से अनुमति लेने में देरी भी एक कारण है। नए अस्पतालों के निर्माण के साथ ही पहले से बने अस्पतालों में अतिरिक्त ब्लॉक का निर्माण भी शामिल है। इन परियोजनाओं के पूरा होने से दिल्ली के अस्पतालों में 10000 से अधिक बेड की संख्या बढ़ जाएगी। इससे मरीजों को फायदा होगा।

दरअसल, निर्माण कार्य के लिए 10,250 करोड़ रुपये से अधिक का फंड और निर्माण के बाद संचालन के लिए सालाना 8,000 करोड़ रुपये की दरकार है। अब भाजपा सरकार इन परियोजनाओं को जल्द पूरा करने के लिए अड़चनें दूर करने का प्रयास कर रही है। चरणबद्ध तरीके से काम कराया जाएगा। इसमें जिन अस्पतालों का काम थोड़ा बचा है, उन्हें पहले पूरा कराया जाएगा।

दिल्ली सरकार ने वर्ष 2025-26 के बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं के निर्माण के लिए 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। सिरसपुर, मादीपुर, ज्वालापुरी व हस्तसाल में 3,237 सामान्य बेड और शालीमार बाग, किराड़ी, सुल्तानपुरी, सरिता विहार, रघुबीर नगर, गुरु तेग बहादुर अस्पताल व चाचा नेहरू बाल अस्पताल में 6,836 आईसीयू बेड जोड़े जाएंगे।

एक साल से नहीं हुई कोई प्रगति
अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा समय में अस्पताल उसी स्थिति में हैं, जहां एक साल पहले थे। किराड़ी में अस्पताल का अभी निर्माण शुरू भी नहीं हुआ है। आईसीयू बेड वाले छह अस्पतालों में निर्माण कार्य 40-63 फीसदी के बीच हुआ है। हस्तसाल में 51 फीसदी निर्माण हुआ है। ज्वालापुरी व सिरसपुर के अस्पताल के लिए कोविड-19 की पहली लहर के बाद अगस्त 2020 में मंजूरी दी गई थी, जबकि मादीपुर के अस्पताल को नवंबर 2020 में मंजूरी दी गई थी। सितंबर 2021 में सात आईसीयू अस्पताल बनाने की मंजूरी दी गई थी। सभी अस्पतालों को प्राथमिकता के आधार पर बनाया जाना था, लेकिन फंड की कमी के कारण ये अभी तक पूरे नहीं हो सके हैं।

हाईकोर्ट ने भी जताई थी चिंता
हाईकोर्ट ने हाल ही में इन परियोजनाओं की धीमी गति पर चिंता जताई थी और राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि निर्माण कार्य को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि समय पर काम पूरा न होने से जनता के धन का दुरुपयोग हो सकता है, जो पहले से ही इन परियोजनाओं पर खर्च किया जा चुका है। इसके बावजूद स्थिति में कोई खास सुधार नहीं दिख रहा है। उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने भी पिछले साल एक समीक्षा बैठक में इन परियोजनाओं की प्रगति पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को चेतावनी दी थी कि अगर ये परियोजनाएं जल्द पूरी नहीं हुईं, तो दिल्ली में खाली पड़े कंक्रीट के ढांचे ही अस्पतालों के नाम पर रह जाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन परियोजनाओं को समय पर पूरा करना है, तो सरकार केवल फंडिंग ही नहीं बढ़ानी होगी, बल्कि निर्माण कार्य की निगरानी और प्रबंधन को भी सख्त करना होगा।

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