
चारधाम यात्रा क्षेत्र में दस दिनों में तीन हेलिकॉप्टर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इस दौरान छह लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके बावजूद सरकारी सिस्टम लापरवाह बना हुआ है। पहाड़ी क्षेत्रों में बीते कुछ वर्षों से हेलिकॉप्टर की उड़ानें ज्यादा हो रही हैं, जिससे दुर्घटना का खतरा बढ़ रहा है।
इस माह 8 तारीख को उत्तरकाशी के गंगनानी के समीप एक सात सीटर चार्टर्ड हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसमें पायलट रोबिन सहित छह लोगों की मौत हो गई थी। वहीं 12 मई को बदरीनाथ हेलिपैड पर थंबी एविएशन का हेलिकॉप्टर रपट गया था। इसमें पायलट सहित छह लोग सवार थे।
संयोग से हेलिकॉप्टर ने उस समय उड़ान नहीं भरी थी। वहीं शनिवार को केदारनाथ में हेली एंबुलेंस को टेल रोटर टूटने की वजह से इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी। इस दौरान पायलट सहित सभी तीन लोग सुरक्षित रहे।
इन हादसों का तकनीकी कारण जो भी रहा हो, पर लेकिन जिस तरह से पहाड़ की संकरी घाटियों में हेलिकॉप्टर धड़ल्ले से उड़ान भर रहे हैं, उससे निरंतर दुर्घटना का खतरा बना रहता है। चारधाम यात्रा से जुड़े लोगों का कहना है कि हेलिकॉप्टर सेवा का संचालन कुछ मायनों में सही है, पर जिस तरह से उड़ानें हो रही हैं, वह स्थानीय पर्यावरण और परिवेश के लिए ठीक नहीं है।
पहाड़ी क्षेत्र में पल-पल बदलते मौसम, ऊंची पहाड़ियां, सघन वन क्षेत्र और संकरी घाटियों के बीच हेलिकॉप्टरों की सुरक्षित उड़ान के लिए नागरिक उड्डयन विभाग ने कोई प्रयास नहीं किए हैं। यहां तक कि संवेदनशील केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में भी हेलिकॉप्टर की सुरक्षित उड़ान के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं।
पिछले साल भी केदारनाथ में हुई थी इमरजेंसी लैंडिंग
बीते वर्ष 24 मई को फाटा से छह यात्रियों को लेकर केदारनाथ जा रहे एक हेलिकॉप्टर ने भी इमरजेंसी लैंडिंग की थी। तब पायलट कल्पेश मरुचा ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए ढलान वाली जगह पर हेलिकॉप्टर को लैंड कराया था। उस हेलिकॉप्टर में तमिलनाडु के छह यात्री सवार थे।