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भारत-चीन के रिश्तों में आई गर्मजोशी का क्या है कारण?

क्या भारत और चीन के रिश्तों में हाल में आई गर्मजोशी अचानक है? अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वार के बीच बीजिंग और नई दिल्ली में कूटनीतिक हलचल को देखते हुए किसी को भी ऐसा लग सकता है लेकिन संबंधों को बेहतर बनाने के लिए किए जा रहे प्रयास 2017 के डोकलाम संकट और 2021 के गलवन संघर्ष के बाद शुरू हुई प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

सीमा पर तनाव के बीच भी भारत और चीन के बीच बात जारी थी। यह अचानक आई लहर नहीं है। कूटनीति ऐसे ही काम करती है,, गहराई में और चुपचाप।

सीमा विवाद पर प्राथमिकताएं अलग

दोनों पक्ष संबंधों को बेहतर बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन चीन के विस्तारवादी रवैये के कारण सीमा पर समस्याएं अब बनीं हुईं हैं। चीन बातचीत पर ज़ोर दे रहा है, वहीं भारत की प्राथमिकता में सीमा का मुद्दो सबसे ऊपर है। हालांकि, भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के साथ दोनों पक्ष अधिक व्यावहारिक रवैया अपनाते दिख रहे हैं।

सीमा मुद्दों के प्रबंधन के लिए बनेगा नया तंत्र

वांग यी की यह यात्रा ऐसे समय हुई है जब प्रधानमंत्री सात वर्ष के अंतराल के बाद इसी महीने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं। मंगलवार को वांग यी ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। वांग की यात्रा के बाद अधिकारियों ने पुष्टि की है कि भारत और चीन सीमा व्यापार को फिर से खोलने, सीधी उड़ानें शुरू करने, कैलाश तीर्थयात्रा का विस्तार करने और सीमा मुद्दों के प्रबंधन के लिए नए तंत्र स्थापित करने पर सहमत हुए हैं।

सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास

इस बीच भारत ने चीन से लगती सीमा के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे का निर्माण तेजी से किया। बाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के तहत सीमावर्ती गांवों का विकास किया और नई सुरंग योजनाओं सहित दारबुक श्योक डीबीओ जैसी सड़कों का निर्माण किया। आज भारत सीमा पर बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर बेहतर स्थिति में है।

निचले स्तर पर पहुंचे द्विपक्षीय संबंध

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवन घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई। यह 45 वर्षों में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पहला घातक टकराव था, जिसमें 20 भारतीय और अज्ञात संख्या में चीनी सैनिक मारे गए। द्विपक्षीय संबंध 1962 के युद्ध के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए चीनी एप पर प्रतिबंध लगा दिए और चीन से आने वाले निवेश पर निगरानी कड़ी कर दी, वहीं चीन ने लोगों के बीच आपसी आदान-प्रदान को कम कर दिया। हालांकि द्विपक्षीय व्यापार जारी रहा।

डोकलाम गतिरोध के बाद शिखर वार्ता

2017 में डोकलाम गतिरोध के बाद भारत-चीन संबंधों को गहरा झटका लगा। भूटान की सीमा पर ट्राइजंक्शन के पास दो महीने से ज्यादा समय तक भारत और चीन के सैनिक आमने सामने खड़े रहे। गतिरोध एक भी गोली चले बिना खत्म हुआ, लेकिन इसने गहरे जख्म छोड़े और दोनों देशों को अनियंत्रित तनाव के खतरों को समझने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 2018 में वुहान में पहली ‘अनौपचारिक शिखर वार्ता, के लिए मुलाकात की। इसके बाद 2019 में, मोदी ने तमिलनाडु के मम्मलपुरम में शी चिनफिंग की मेजबानी की।

अग्रिम चौकियों से सैनिकों की वापसी

गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत और चीन ने एलएसी पर तनाव कम करने के लिए सावधानीपूर्वक, चरणबद्ध तरीके से सैनिकों को पीछे हटाना शुरू किया। ऐसा पहला कदम फरवरी 2021 में पैंगोंग त्सो में उठाया गया, जहां दोनों पक्षों ने दोनों तटों पर अग्रिम चौकियों से सैनिकों की वापसी पूरी कर ली। सितंबर 2022 में गोगरा-हाट स्प्रिंग्स में, विशेष रूप से पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 पर, सैनिकों ने समन्वित रूप से पीछे हटना शुरू किया और अस्थायी ढांचों को ध्वस्त कर दिया। हालांकि ये कदम क्रमिक थे, लेकिन इन कदमों ने गतिरोध को खत्म करने में रणनीतिक भूमिका निभाई।

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